Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन
५. अर्थविनिश्चयसूत्र
इस ग्रन्थ की उपलब्धि भी स्व० पं० राहुल सांकृत्यायन को ही हई थी। इसका मूल लेखक अज्ञात है किन्तु ८वीं शतान्दी के नालन्दा बिहार के प्रौढ़ भिक्ष एवं आचार्य वीरश्रीदत्त ने इस पर निबन्धन नामक टीका लिखी है। इसके दो प्राचीन संस्करण भी मिलते हैं। दोनों की भाषा तिब्बती है। पहला तिब्बती व्याख्या के साथ मिलता है जबकि दूसरे में तिब्बती अनुवाद के साथ संस्कृत व्याख्या भी है।
__ अर्थविनिश्चयसूत्र के प्रतिपादन की अपनी शैली है। प्रारम्भ में प्रतिपादित किए जाने वाले विषयों की सूची दी गई है। फिर उनका एक के बाद एक प्रश्न करके विशेष व्याख्यान किया गया है। उदाहरण के लिए भिक्षुओ ! पाँच स्कन्ध उपादान कौन से हैं ? जैसे कि वे हैं---रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार एवं विज्ञान ।
इसमें प्रतिपादित विषय हैं-स्कन्ध, उपादानस्कन्ध, धातु, आयतन, प्रतीत्यसमुत्पाद, आर्यसत्य, इन्द्रिय, ध्यान, आरूप्यसमापत्ति, ब्रह्मविहार, प्रतिपत्, समाधि, स्पत्यपस्थान, सम्यक्प्रहाण, ऋद्धिपाद, पञ्चेन्द्रिय, बल, बोध्यङग, अष्टाङिगकमार्ग, आनापानस्मृति, स्रोत-आपत्ति, तथागतबल, वशारद्य, प्रतिसंवित्, आवेणिकधर्म, महापुरुषलक्षण और अनुव्यञ्जन।
यह गन्थ निबन्धन टीका के साथ डा० एन० एच० सान्ताणी के द्वारा सम्पादित होकर १९७० में जायसवाल शोध संस्थान पटना से प्रकाशित हुआ है। ६. अभिधर्मामृत
यह अनुपम कृति सम्राट कनिष्क कालीन आचार्य घोषक की एक मात्र रचना है । अभिधर्मामृत अभिधर्म का सार है, जो मूलरूप में चीनी अनुवाद में थी। इस रचना का निबन्धन आचार्य घोषक ने कहां बैठकर किया, कहना कठिन है । सन् १९५३ में विश्वभारती शान्ति निकेतन से प्रकाशित तथा भिक्षुशान्ति शास्त्री द्वारा सम्पादित यह ग्रन्थ चीनी संस्करण का संस्कृत रूपान्तर है । विषय वस्तु के विभाजन एवं उसके वर्गीकरण करने की शैली अभिधर्मामत की अपनी विशेषता है। कुछ
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