Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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प्राक्कथन
जीवन में प्रारब्ध से वातावरण और संगति का महत्व अधिक होता है। शुभ वातावरण एवं संसर्ग में रह रहे बाल मन पर पड़े हुए संस्कार बड़े होते हैं । मेरा बचपन प्रायः अपने बाबा जी के चरणों बता हैं । प्रभु के परम भक्त थे और प्रायः रात्रि में ईश्वर भक्ति में तल्लीन हो जाया करते थे तब मैं भी उनकी इस तल्लीनता का कभी-कभी अनुकरण करता था । उनके इस भक्तिमय वातावरण एवं संगति तथा उनको दृढ़ आस्था और अनुरक्ति ने मुझमें भी ऐसे ही भाव भर दिए कि आगे चलकर इसी प्रभाव के कारण मेरा मन आध्यात्मिकता को ओर आकृष्ट हुआ और मैंने सन्यास ले मुनि बाना धारण कर लिया ।
मुनि का लक्ष्य भवसागर से पार होना है, जो कि योग के द्वारा ही सम्भव है जैसे कि उत्तराध्ययनसूत्र में भी कहा है कि
जोए वहमाणस्स, संसारो अइवत्तई । ( २७.२)
अर्थात् योगयुक्त साधक संसार सागर को पार कर जाता है । जिस प्रकार अग्नि से स्वर्ण शुद्ध हो जाता है उसी प्रकार अविद्या और अज्ञानमल से मलिन आत्मा भी योगरूपी अग्नि से शुद्ध हो जाता
मनस्य यथाम्नोवह्नः शुद्धिनियोगतः । योगाग्नेरचेतसस्तद्वदविद्यामलिनात्मनः ॥ योगबिन्दु, श्लोक ४१
योग की इसी महिमा से मेरा मन योग के विशेष अध्ययन के लिए उत्प्रेरित हुआ ।
अपनी इस मनीषा की चर्चा जब मैंने विद्वानों से की तो उन्होंने मेरे साधक जीवन को ध्यान से रखते हुए किसी योग परक ग्रन्थ पर कार्य करने का परामर्श दिया । पूज्य गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्तक श्रीभण्डारी पद्मचन्द्र जी महाराज ने आचार्य हरिभद्रसूरि के महत्त्व
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