Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन
ग्रन्थों में योगसाधना का विस्तार पूर्वक वर्णन हुआ ।। बौद्धदर्शन में योग शब्द :
भगवान् बद्ध ने योगसाधना को विरासत में प्राप्त किया था। अत: उन्होंने ज्यों का त्यों तो नहीं, कुछ परिवर्तन के साथ उसे अपने वचनों में ग्रहण कर लिया। अराडकलाम और उद्दक रामपुत्र जैसे ध्यानयोगी आचार्य भगवान् बुद्ध के गुरु थे। इन आचायों के अन्य शिष्यगण भी यत्र-तत्र ध्यानयोग की शिक्षा-दीक्षा देते थे। बुद्ध ने भी इन दोनों आचार्यों से नैवसंज्ञानासंज्ञायतन (आरूप्य ध्यान) तक का योगाभ्यास किया था. फिर भी वे उससे सन्तुष्ट नहीं हुए और वे स्वच्छन्द एवं स्वतन्त्र साधना में तत्पर हो गए ।
बोधि प्राप्त करने से पूर्व तथागत बुद्ध ने स्वयं श्वासोच्छ्वास के निरोध करने का प्रयत्न किया था। वे अपने शिष्य अग्गिवेस्सन से कहते भी हैं कि 'मैं श्वासोच्छवास का निरोध करना चाहता था इसलिए मैं मुख, नाक एवं कर्ण में से निकलते हए सांस को रोकने का प्रयत्न करता रहा।
त्रिपिटक के अध्ययन से भी हमें मिलता है कि भगवान् बुद्ध जब कभी थोड़ा-सा भी समय खाली पाते थे तो वे उसी समय एकान्तचिन्तन में लग जाते थे, ध्यान में लीन हो जाते थे, समाधि में तल्लीन हो जाते थे। इसकी पुष्टि मज्झिमनिकाय, ललितविस्तर' और बद्धचरित: आदि १. षटचक्रनिरूपण, पृ० ६०. ६१. ८२. ६० २. विस्तृत अध्ययन के लिए दे--अभिधर्म देशना : बौद्ध सिद्धान्तों का
विवेचन, पृ० १७८ ३. दे. वही, पृ० १७२ फुट नोट नं० २ ४. दे० (क) मज्झिननि० भाग २, पृ० ४८४-८७
(ख) तस्य मे भिक्षवे एतदभवत्-यदहं पितुरुग्राने जम्बुच्छायाम् निषण्णो विविक्तं काम विविका पापकैरकुशलैर्धः सवितर्क सविचारं विवेकजं प्रीतिसुखं प्रथमं ध्यानम संपद्य व्याहार्ष यावच्चतुर्थध्यानमुपसंपद्य व्याहर्ष स्याल मार्गो बोधे तिजरामरणदुःखसमुदयानामसम्भवायास्तंगमायेति । तदनुसारि च मे विज्ञानमभूत । स मार्गों
बोधोरिति । ललित०, पृ० १६३ ५. दे० बु० च०, १२, १०१
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