Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योगविन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन
योग शब्द का अर्थ : ___'योग' शब्द संस्कृत में 'युज् धातु' में 'घा' प्रत्यय के मेल से बनता है । यद्यपि संस्कृत व्याकरण में 'युज्' नाम की दो धातुएं मिलती हैं, इनमें से एक का अर्थ 'जोड़ना' है, जबकि दूसरी का 'मन: समाधि'' अर्थात् 'मन को स्थिर करना' है । सामान्यतया दर्शन में योग का अर्थसम्बन्ध करना अथवा चित्त को स्थिर करना ही लिया गया है ।
वैदिक साहित्य में योग शब्द :
प्राचीन साहित्य में सर्वप्रथम ऋग्वेद में 'योग' शब्द मिलता है, यहां इसका अर्थ 'जोड़ना' मात्र है। ईसा पूर्व ७ वीं शदी तक रचित साहित्य में 'योग' शब्द' 'इन्द्रियों को प्रवृत्त करना' इस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है तथा ई०पू० ५ वीं से ६ वीं शदी तक रचित साहित्य में इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना' इस अर्थ में 'योग' शब्द का प्रयोग हआ है। जबकि उपनिषद् साहित्य में योग पूर्णतः आध्यात्मिक अर्थ में मिलता है । कुछ एक उपनिषदों में योग साधना का विस्तृत वर्णन मिलता है।
इस प्रकार ऋग्वेद में जोड़ने के अर्थ में प्रयुक्त 'योग' शब्द उपनिषद् काल तक आते-आते शरीर, इन्द्रिय एवं मन को स्थिर करने की साधना के अर्थ में भी प्रयोग किया जाने लगा।
महाभारत में योग के विभिन्न अंगों का विवेचन प्राप्त होता है।' स्कन्दपुराण में कई स्थानों पर योग की चर्चा है। भागवतपुराण में
१. 'युज पीयोगे' । हेमचन्द्र धातु पाठमाला, गण-७ २. 'युजि च समाधोः' । वही, गण-८ ३. कल धा नो योग आ भवन, सधीनां योगमिन्विति ।
ऋग्वेद १. ५. ३; १. १८. ७ ४. दार्शनिक निबन्ध (अंग्रेजी), पृ० १७६ ५. अध्यात्म मोगाधिगमेन देवं मत्वा धीरो हर्षशोको जहाति ।
कठोपनिषद् १, २, १२ ६. दे० योगराजोपनिषद् अद्वयतारकोपनिषदादि ७. दे० महाभारत, शान्ति, अनुशासन और भीष्मपर्व ८. दे० स्कन्दपुराण, भाग १, अ० ५५
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