Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना को समीक्षात्मक अध्ययन
ने मोक्षप्राप्ति का कारण सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र को माना है जबकि आचार्य शुभचन्द्र ने मोक्ष प्राप्त कराने का साधन 'ध्यान' को स्वीकार किया है। वे कहते हैं कि हे आत्मन् ! तू संसार के दुःखों के विनाशार्थ ज्ञान रूपी सुधारस को पी और संसाररूपी समुद्र के पार होने के लिए ध्यान रूपी जहाज का अवलम्बन कर ।।
इसके बाद उपाध्याय यशोविजय के योग ग्रन्थों पर हमारी दृष्टि जाती है । उपाध्याय यशोविजय का आगम ज्ञान, चिन्तन-मनन और योगानुभव विस्तृत एवं गम्भीर था । उन्होंने अध्यात्मसार, तथा अध्यात्मोपनिषद् आदि योगपरक ग्रन्थ लिखे हैं जिनमें जैन मान्यताओं का स्पष्ट एवं रोचक वर्णन करने के अतिरिक्त अन्य दर्शनों के साथ जैनदर्शन की समानता का भी उल्लेख किया गया है।
___ उपाध्याय ने अध्यात्मसार ग्रन्थ के योगाधिकार प्रकरण में प्रमुख रूप से योग पर अपना चिन्तन प्रस्तुत किया है। यहां उन्होंने योग को चार भागों में बांटा है और उन्होंने पहले कर्मयोग फिर ज्ञानयोग और उसके बाद ध्यानयोग पर आरूढ होकर मुक्ति लाभ की उपलब्धियों पर विस्तार से प्रकाश डाला है । (ख) योग विषयक वाङमय
भारतीय वाङमय में योग विषयक ओजस्वी विचार अपने मूलरूप में अत्यन्त प्राचीन है। सर्वप्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में योग द्वारा प्राप्त अलौकिक शक्तियों का वर्णन, कठ-तैत्तिरीय आदि उपनिषदों में योग की परिभाषा, महाभारत और गीता जैसे दिव्य ग्रन्थों में वर्णित योग विषयक प्रचुर सामग्री को देखकर योग ध्यान-साधना की अतिव्यापकता एवं प्राचीनता का अनुमान सहज ही ज्ञात हो जाता है।
भारतीय साहित्य चाहे वह वैदिक हो या बौद्ध अथवा जैन सभी में
१. भवक्लेश विनाशाय पिव ज्ञानसुधारसम् ।।
कुरु जन्माब्धिमत्येतुं ध्यानपोतावलम्बनम् । ज्ञानार्ण० ३.१२ २. कर्मयोग समम्यस्य ज्ञानयोगसमाहितः ।
ध्यानयोगं समारुह्य मुक्तियोगं प्रपद्यते । अध्यात्मसार, १४.८३
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