Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith
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(xxxxiv) आगमोत्तरकालीन जैन ग्रंथ (1) ध्यानशतक, (2) मोक्षपाहुड, (3) समयसार, (4) तत्वार्थसूत्र, (5) इष्टोपदेश, (6) समाधिशतक, (7) परमात्मप्रकाश, (8) हरिभद्र की पंच रचनाएं, (9) योगसार प्रामृत, (10) ज्ञानार्णव, (11) योगशास्त्र जैनदर्शन में योग साधना और योगविन्दु (31- 42) जैनशब्द का अभिप्राय, अरहन्त>आर्य, जैनदृष्टि से दर्शनपद, अनन्तधर्मात्मक वस्तु, त्रिगुणात्मक वस्तु, अनेकान्तवाद, जैनसाधना से योग, साधना में मन का महत्व, साधना में गुरु का महत्व, साधना में जप
का महत्व, योग साधना और योगबिन्दु परिच्छेद-द्वितीय : योगबिन्दु के रचयिता : आचार्य हरिभद्रसूरि
43-102 (क) जैनसन्त हरिभद्रसूरि : एक परिचय (43- 55)
(1) हरिभद्रसूरि का जन्म स्थल, (2) हरिभद्रसूरि के माता-पिता, (3) हरिभद्रसूरि का विद्याभ्यास, (4) धर्मपरिवर्तन, (5) आचार्यपद, (अ) याकिनी महत्तरासुनु हरिभद्रसूरि, (आ) भवविरहसूरि हरिभद्र, (1) धर्मस्वीकार का प्रसंग, (2) शिष्यों के वियोग का प्रसंग, (3) याजकों को दिए जाने वाले आशीर्वाद और उनके द्वारा किए जाने वाले जय जयकार का प्रसंग, विचरणक्षेत्र, पोरवाल वंश की
स्थापना
(ख) हरिभद्रसूरि का समय (55- 62)
(1) परम्परागत मान्यता, (2) मुनिजिनविजय की मान्यता, (3) प्रोफेसर के० वी० आभ्यंकर की मान्यता, पाश्चात्य जर्मन विद्वान हर्मन जैकोबी का मत, डा० नेमिचन्द्र शास्त्री का मत, आदि शंकराचार्य से पूर्ववर्ती हरिभद्रसूरि
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