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प्रस्तावना :: 27
"मुनिपरिषण्मध्ये सन्निषण्णं मूर्तमिव मोक्षमार्गमवाग्विसर्ग वपुषा निरूपयन्तं युक्त्यागमकुशलं परहितप्रतिपादनैककार्यमार्यनिषेव्यं निर्ग्रन्थाचार्यवर्यम्।"
-जो मुनिसभा के मध्य में विराजमान थे, जो बिना वचन बोले अपने शरीर से ही मानो मूर्तिधारी मोक्षमार्ग का निरूपण कर रहे थे, जो युक्ति और आगम में कुशल थे, परहित का निरूपण करना ही जिनका एक कार्य था तथा जो आर्यपरुषों के द्वारा सेवित थे ऐसे निर्ग्रन्थ दिगम्बर जैनाचार्य उमास्वामी महाराज थे।
विद्यानन्दि स्वामी ने भी आपके व्यक्तित्व के साथ 'भगवद्भिः' इस प्रकार आदर सूचक शब्दों का प्रयोग किया है। इतना ही नहीं सूत्रकार के साथ ही सूत्रों को पढ़ने की भी महत्ता को दर्शाया है
दशाध्याये परिच्छिन्ने तत्त्वार्थे पठिते सति।
फलं स्यादुपवासस्य भाषितं मुनिपुंगवैः ।। दशाध्याय प्रमाण तत्त्वार्थसूत्र का पाठ और अनुगम करने पर मुनिश्रेष्ठों ने एक उपवास का फल बतलाया है अर्थात् एक उपवास से जितने कर्मों की निर्जरा होती है उतनी निर्जरा अर्थ समझते हुए तत्त्वार्थसूत्र के एक बार पाठ करने से होती है। तत्त्वार्थसूत्र के कुछ टीकाकार एवं टीकाओं का संक्षिप्त परिचय
स्वामी समन्तभद्राचार्य क्षत्रिय राजपुत्र थे। जन्म नाम शान्ति वर्मा था। इनके गुरु का क्या नाम था, गुरुपरम्परा क्या थी इतिहास में अज्ञात है। फिर भी आप धर्म, न्याय, व्याकरण, साहित्य, ज्योतिष; आयुर्वेद, मन्त्र एवं तन्त्र आदि विशेष विद्याओं में निपुण होने के साथ ही वाद-कला में अत्यन्त पटु थे। काशीनरेश को आपने अपना परिचय इस प्रकार से दिया था :
आचार्योऽहं कविरहमहं वादिराट् पण्डितोऽहं, दैवज्ञोऽहं भिषगहमहं मान्त्रिकस्तान्त्रिकोऽहम्। राजन्नस्यां जलधिवलया मेखलायामिलाया
माज्ञासिद्धः किमिति बहुना सिद्धसारस्वतोऽहम्।। अर्थात् मैं आचार्य हूँ, कवि हूँ, शास्त्रार्थियों में श्रेष्ठ हूँ, पण्डित हूँ, ज्योतिषी हूँ, वैद्य हूँ, मान्त्रिक हूँ, तान्त्रिक हूँ। हे राजन् ! इस सम्पूर्ण पृथिवी में, मैं आज्ञासिद्ध हूँ। अधिक क्या कहूँ मैं सिद्ध सारस्वत हूँ।
ऐसे समन्तभद्राचार्य द्वारा तत्त्वार्थसूत्र पर रचित गन्धहस्ति महाभाष्य टीका अद्यावधि अनुपलब्ध है, किन्तु इनके द्वारा रचित अन्य कृतियाँ आप्तमीमांसा, युक्त्यनुशासन, बृहत्स्वयंभूस्तोत्र, रत्नकरण्डश्रावकाचार एवं स्तुतिवि उपलब्ध हैं। आपका समय विक्रम की दूसरी-तीसरी शताब्दी है।"
पूज्यपादाचार्य-ये कर्नाटक देश के कोले ग्राम में माधवभट्ट एवं श्रीदेवी ब्राह्मणी के घर जन्मे थे। आपके देवनन्दी, देव, जिनेन्द्रबुद्धि, पूज्यपाद नाम प्रसिद्ध हैं। गुणरत्न महोदधि शब्दकोश के कर्ता के अनुसार, आपका एक नाम 'चन्द्रगोमि' भी था। इनके प्रसिद्ध ग्रन्थ थे-सर्वार्थसिद्धि, समाधितन्त्र, इष्टोपदेश, दशभक्ति, जैनेन्द्रव्याकरण,
89. सर्वा. सि., पृ. 1 90. तत्त्वा. सू., प्रशस्ति 91. तत्त्वा. सा., प्रस्ता. 92. श्रव. गो. शि. ले. नं. 254 एवं 64
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