Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
हत्युत्तराहिं' शब्द दिये हैं। जिसकी संस्कृत छाया टीकाकार ने इस प्रकार की है - "हस्तोपलक्षिता उत्तराः, हस्तो वा उत्तरो यासां ता हस्तोत्तराः॥" - अर्थ - जिस नक्षत्र के बाद हस्त नक्षत्र आता है उसको हस्तोत्तरा कहते हैं। अट्ठाईस नक्षत्रों में क्रम से गिनने पर उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के बाद "हस्त नक्षत्र" आता है। इसलिये यहाँ पर "हस्तोत्तरा" शब्द से उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र लिया गया है। किन्तु हस्तोत्तरा नाम का कोई नक्षत्र नहीं है।
पञ्च कल्याणक - तीर्थंकर भगवान् के नियमपूर्वक पांच कल्याणक होते हैं। वे दिन तीनों लोकों में आनन्ददायी तथा जीवों के मोक्ष रूप कल्याण के साधक हैं। पञ्च कल्याणक के अवसर पर देवेन्द्र आदि भक्ति भाव पूर्वक कल्याणकारी उत्सव मनाते हैं। पञ्च कल्याणक ये हैं - ..
१. गर्भ कल्याणक (च्यवन कल्याणक) २. जन्म कल्याणक ३. दीक्षा (निष्क्रमण) कल्याणक. ४. केवलज्ञान कल्याणक ५. निर्वाण कल्याणक। ____नोट - गर्भ कल्याणक के अवसर पर देवेन्द्र आदि के उत्सव का वर्णन नहीं पाया जाता है। भगवान् श्री महावीर स्वामी के गर्भापहरण को भी कोई कोई आचार्य कल्याणक मानते हैं। गर्भापहरण कल्याणक की अपेक्षा भगवान् श्री महावीर स्वामी के छह कल्याणक कहलाते हैं।
॥इति पांचवें स्थान का पहला उद्देशक समाप्त ।
__पांचवें स्थान का दूसरा उद्देशक
अपवाद मार्ग कथन णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा इमाओ उहिलाओ गणियाओ वियंजियाओ पंच महण्णवाओ महाणईओ अंतोमासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा तंजहा - गंगा, जउणा, सरऊ, एरावई, मही । पंचहिं ठाणेहिं कप्पइ तंजहा - भयंसिवा, दुब्भिक्खंसिवा, पव्वहेज्जवाणं कोई उदओघंसिवा, एग्जमाणंसि महया वा, अणारिएस । णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पढम पाउसंसि गामाणुगाम दुइज्जित्तए । पंचहिं ठाणेहिं कप्पइ तंजहां - भयंसि वा, दुब्भिक्खंसि वा, जाव महया वा अणारिएहिं । वासावासं पज्जोसवित्ताणं णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा गामाणुगामं दुइजित्तए । पंचहिं ठाणेहिं कप्पइ तंजहा - णाणट्ठयाए,
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