Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ७
१८९
मिथ्यात्व मोहनीय के उदय से और मिश्रदर्शन मिश्र मोहनीय के उदय से होता है। चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होते हैं और केवलदर्शन दर्शनावरणीय फर्म के क्षय से होता है। सामान्य बोध ही इनका स्वभाव है। इस प्रकार तीन दर्शन श्रद्धान रूप और चार दर्शन सामान्य अवबोध रूप होने से दर्शन के सात भेद कहे गये हैं। . छद्मस्थ सात स्थानों को संपूर्ण रूप से न जान सकता है न देख सकता है। इनमें से धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और शरीर रहित जीव अरूपी है। परमाणु पुद्गल, शब्द और गंध रूपी होने पर भी छद्मस्थ उन्हें सर्वपर्यायों सहित जानने में असमर्थ है। केवली भगवान् केवलज्ञान के द्वारा सभी रूपी और अरूपी पदार्थों को प्रत्यक्ष जानते हैं और देखते हैं।
विकथा की व्याख्या और प्रथम के चार भेदों का वर्णन चौथे स्थान में किया गया है। शेष तीन कथाएं ये हैं - ____ १. मृदुकारुणिकी - पुत्रादि के वियोग से दुःखी माता आदि के करुण क्रन्दन से भरी हुई कथा को मृदुकारुणिकी कहते हैं।
२. दर्शनभेदिनी - ऐसी कथा करना जिस से दर्शन अर्थात् सम्यक्त्व में दोष लगे या उसका भंग हो। जैसे ज्ञानादि की अधिकता के कारण कुतीर्थी की प्रशंसा करना। ऐसी कथा सुनकर श्रोताओं की श्रद्धा बदल सकती है।
३. चारित्रभेदिनी - चारित्र की तरफ उपेक्षा या उसकी निन्दा करने वाली कथा। जैसे - आज कल साधु महाव्रतों का पालन कर ही नहीं सकते क्योंकि सभी साधुओं में प्रमाद बढ़ गया है, दोष बहुत लगते हैं, अतिचारों को शुद्ध करने वाला कोई आचार्य नहीं है, साधु भी अतिचारों की शुद्धि नहीं करते, इसलिए वर्तमान तीर्थ ज्ञान और दर्शन पर ही अवलम्बित है। इन्हीं दो की आराधना में प्रयत्न करना चाहिए। ऐसी बातों से शुद्ध चारित्र वाले साधु भी शिथिल हो जाते हैं। जो चारित्र की तरफ अभी झुके हैं उन का तो कहना ही क्या? वे तो बहुत शीघ्र शिथिल हो जाते हैं।
___ योनि स्थिति अपकायिक नैरयिक जीवों की स्थिति अह भंते ! अयसि कुसुंभ कोइव कंगु राल गवरा कोदूसगा सण सरिसव मूला बीयाणं एएसिणं धण्णाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्ला उत्ताणं जाव पिहियाणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सत्त संवच्छराई, तेण परं जोणी पमिलायइ जाव जोणी वोच्छए पण्णत्ते । बायर आउकाइयाणं उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता।...
तच्चाए णं वालुयप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं णेरइयाणं सत्त सागरोवमाइं ठिई
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