Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अथवा स्थावर प्राणियों का सर्वथा व्यवच्छेद - अभाव हो जायगा अथवा स्थावर प्राणी त्रस बन जायेंगे अथवा स प्राणी स्थावर बन जायेंगे । यह लोक की पांचवीं स्थिति है । ऐसा कदापि त्रिकाल में भी नहीं हुआ है, नहीं होता है और नहीं होगा कि - लोक अलोक हो जायगा अथवा अलोक लोक हो जायगा, यह लोक की छठी स्थिति है । ऐसा कदापि तीन काल में भी नहीं हुआ है, नहीं होता है और न होगा कि लोक अलोक में प्रविष्ट हो जायगा अथवा अलोक लोक में प्रविष्ट हो जायगा, यह लोक की सातवीं स्थिति है । जितने क्षेत्र में लोक है । वहाँ वहाँ जीव हैं और जितने क्षेत्र में जीव हैं उतना क्षेत्र लोक है, यह आठवीं लोकस्थिति है । जहाँ जहाँ जीव और पुद्गलों की गति होती है । वह लोक
और जहाँ जहाँ लोक है वहाँ वहाँ जीव और पुद्गलों की गति होती है, यह नववीं लोक स्थिति है । लोकान्त में सब पुद्गल इतने रूक्ष हो जाते हैं कि वे परस्पर पृथक् हो जाते हैं अर्थात् बिखर जाते हैं जिससे जीव और पुद्गल लोक के बाहर जाने में समर्थ नहीं होते हैं अर्थात् लोक का ऐसा ही स्वभाव है कि लोकान्त में जाकर पुद्गल अत्यन्त रूक्ष हो जाते हैं जिससे कर्म सहित जीव और पुद्गल फिर आगे गति करने में असमर्थ हो जाते हैं, यह दसवीं लोकस्थिति है ।
विवेचन - लोकस्थिति - लोक की स्थिति दस प्रकार से व्यवस्थित है ।
स्थान १०
१. जीव एक जगह से मर कर लोक के एक प्रदेश में किसी गति, योनि अथवा किसी कुल में निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं। यह लोक की प्रथम स्थिति है ।
२. प्रवाह रूप से अनादि अनन्त काल से मोक्ष के बाधक स्वरूप ज्ञानावरणीयादि आठ कर्मों को 'निरन्तर रूप से जीव बाँधते रहते हैं। यह दूसरी लोक स्थिति है।
३. जीव अनादि अनन्त काल से मोहनीय कर्म को बाँधते रहते हैं। यह लोक की तीसरी स्थिति है। ४. अनादि अनन्त काल से लोक की यह व्यवस्था रही है कि जीव कभी अजीव नहीं हुआ है, न होता है और न भविष्यत् काल में कभी ऐसा होगा। इसी प्रकार अजीव कभी भी जीव नहीं हुआ है, न होता है और न होगा। यह लोक की चौथी स्थिति है।
५. लोक के अन्दर कभी भी त्रस और स्थावर प्राणियों का सर्वथा अभाव न हुआ है, न होता है और न होगा और ऐसा भी कभी न होता है, न हुआ है और न होगा कि सभी त्रस प्राणी स्थावर बन गए हों अथवा सब स्थावर प्राणी त्रस बन गए हों। इसका यह अभिप्राय है कि ऐसा समय न आया है, न आता है और न आवेगी कि लोक के अन्दर केवल त्रस प्राणी ही रह गए हों अथवा केवल स्थावर प्राणी ही रह गए हों। यह लोक स्थिति का पाँचवां प्रकार है।
६. लोक अलोक हो गया हो या अलोक लोक हो गया हो ऐसा कभी त्रिकाल में भी न होगा, न होता है और न हुआ है। यह लोक स्थिति का छठा प्रकार है।
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