Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 सव्वत्थसमा झल्लरि संठाणसंठिया दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णता।रुयगवरे णं पव्वए दस जोयणसयाइं उव्वेहेणं मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं उवरि दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं उवरि दसजोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णत्ता । एवं कुंडलवरे वि॥१२०॥
कठिन शब्दार्थ - धरणितले - पृथ्वी पर, विक्खंभेणं - विष्कम्भ (चौडा), सब्बग्गेणं - सर्वाग्र-सब मिला कर, राहुगपयरेसु- क्षुद्र प्रतर-सबसे छोटे प्रतर में, रुयगे - रुचक प्रदेश, पवहंति - निकलते हैं, अग्गीइ - आग्नेय, गोतित्थविरहिए - गोतीर्थ रहित, खेत्ते - क्षेत्र, उदगमाले - उदकमाला (उदक शिखा), महापायाला - महापाताल, मुहमूले - मुख मूल में, कुड्डा- कुड्य-दीवारें, सव्ववइरामया - सर्ववज्रमय, पल्लगसंठाणसंठिया - पर्यक संस्थान संस्थित। . .
भावार्थ - जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत दस सौ योजन अर्थात् एक हजार योजन जमीन में है । पृथ्वी पर दस हजार योजन चौड़ा है, ऊपर यानी पण्डक वन में दस सौ योजन यानी एक हजार योजन चौड़ा है और सब मिला कर एक लाख योजन का है । जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के बीच भाग में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर और नीचे का सबसे छोटा प्रतर है वहाँ आठ प्रदेश वाले रुचक प्रदेश कहे गये हैं । जिन से ये दस दिशाएं निकलती हैं यथा - १. पूर्व २. पूर्व और दक्षिण के बीच की यानी आग्नेय कोण, ३. दक्षिण, ४. दक्षिण पश्चिम के बीच की यानी नैऋत्य कोण, ५. पश्चिम, ६. पश्चिम उत्तर के बीच की यानी वायव्य कोण, ७. उत्तर, ८. उत्तर पूर्व के बीच की यानी ईशान कोण, ९. ऊंची दिशा, १०. नीची दिशा । इन दस दिशाओं के दस नाम कहे गये हैं उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं - इन्द्रापूर्व, आग्नेय, यमा-दक्षिण, नैऋत्य, वारुणी-पश्चिम, वायव्य, सोमा-उत्तर, ईशान, विमला-ऊंची दिशा और तमा-नीची दिशा । लवण समुद्र का गोतीर्थ रहित क्षेत्र यानी समतल भाग दस हजार योजन का कहा गया है। लवण समुद्र का उदगमाला यानी उदक शिखा दस हजार योजन की कही गयी है .। सब यानी चारों महापाताल कलशे एक लाख योजन के ऊंडे कहे गये हैं, मूल भाग में दस हजार योजन के चौडे कहे गये हैं, बीच में एक प्रदेश की श्रेणी से बढते हुए एक लाख योजन के चौडे कहे गये हैं और ऊपर मुख मूल में दस हजार योजन चौडे कहे गये हैं । उन महापाताल कलशों की कुड्य यानी दीवारें सम्पूर्ण वज्र की बनी हुई हैं। वे सब जगह समान हैं। उनकी मोटाई दस सौ योजन यानी एक हजार । योजन की कही गई है । सब यानी ७८८४ छोटे पाताल कलशे एक हजार योजन ऊंडे कहे गये हैं, मूल में एक सौ योजन चौडे कहे गये हैं। बीच में एक प्रदेश की श्रेणी से बढते हुए एक हजार योजन के चौडे कहे गये हैं और ऊपर मुखप्रदेश में एक सौ योजन चौड़े कहे गये हैं । उन छोटे पाताल कलशों की दीवारें सर्ववप्रमय बनी हुई हैं और सब जगह समान हैं, उनकीउनकी मोटाई दस योजन की कही गयी है । धातकीखण्ड के मेरुपर्वत एक हजार योजन ऊंडे हैं जमीन पर देशोन दस हजार योजन चौड़े
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