Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 375
________________ ३५८ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 सयंग्जले सयाऊ य, अणंतसेणे य अमियसेणे य । तक्कसेणे भीमसेणे महाभीमसेणे य सत्तमे ॥दढरहे दसरहे सयरहे। जंबूहीवे दीवे भारहे वासे आगमीसाए उस्सप्पिणीए दस कुलगरा भविस्संति तंजहा - सीमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, विमलवाहणे, संमुई, पडिसुए, दढधणू, दसधणू, सयधणू। .. ___ जंबूहीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिमेणं सीयाए महाणईए उभओं कूले दस . वक्खारपव्वया पण्णत्ता तंजहा - मालवंते चित्तकूडे विचित्तकूडे बंभकूडे जाव सोमणसे । जंबूमंदरपच्चत्थिमेणं सीओआए महाणईए उभओ कूले दस वक्खार पव्वया पण्णत्ता तंजहा - विजुप्पभे जाव गंधमायणे, एवं धायइसंड पुरच्छिमद्धे वि वक्खारा भाणियव्वा जाव पुक्खरवरदीवड्ड पच्चत्थिमद्धे । इन्द्राधिष्ठित कल्प और यान विमान दस कप्पा इंदाहिट्टिया पण्णत्ता तंजहा - सोहम्मे जाव सहस्सारे पाणए अच्चुए एएसु णं कप्पेसु दस इंदा पण्णत्ता तंजहा - सक्के ईसाणे जाव अच्चुए । एएसु णं दसण्हं इंदाणं दस परिजाणिय विमाणा पण्णत्ता तंजहा - पालए पुष्फे जाव विमलवरे सव्वओ भद्दे॥१३७॥ कठिन शब्दार्थ - इंदाहिट्ठिया - इन्द्राधिष्ठित, परिजाणिय विमाणा - परियान विमान ।। भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में गत उत्सर्पिणी काल में दस कुलकर हुए थे उनके नाम इस प्रकार हैं - शतञ्जल, शतायु, अनन्तसेन, अमितसेन, तक्रसेन, भीमसेन, महाभीमसेन, दृढरथ, दशरथ और शतरथ । इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में दस कुलकर होंगे उनके नाम इस प्रकार हैं - सीमंकर, सीमंधर, क्षेमंकर, क्षेमंधर, विमलवाहन, सम्मुचि, प्रतिश्रुत, दृढधनुः, दसधनुः शतधनुः । इस जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के पूर्व दिशा में सीता महानदी के दोनों तटों पर दस वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं यथा - माल्यवान्, चित्रकूट, विचित्रकूट, ब्रह्मकूट, यावत् सोमनस । जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के पश्चिम दिशा में सीतोदा महानदी के दोनों तटों पर दस वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं यथा - विदयुत्प्रभ यावत् गन्धमादन । इसी तरह धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्द्ध में तथा अर्द्धपुष्करवरद्वीप के पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्द्ध में भी दस दस वक्षस्कार पर्वत हैं। . दस देवलोक इन्द्राधिष्ठित कहे गये हैं यथा - सौधर्म से लेकर सहस्रार तक आठ देवलोक और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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