Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 382
________________ स्थान १० ३६५ दस आश्चर्य दस अच्छेरगा पण्णत्ता तंजहा - . उवसग्ग गब्भहरणं इत्थी तित्थं अभाविया परिसा । कण्हस्स अवरकंका, उत्तरणं चंदसूराणं ॥ १॥ हरिवंसकुलुप्पत्ती चमरुप्पाओ य अट्ठसयसिद्धा । असंजएसु पूया, दस वि अणंतकालेण ॥ २॥ १४०॥ कठिन शब्दार्थ - अच्छेरगा - अच्छेरे-आश्चर्यजनक बातें, इत्थीतित्थं - स्त्रीतीर्थ, चंदसूराणं - चन्द्र सूर्य का, उत्तरणं - अवतरण, हरिवंसकुलुप्पत्ती - हरिवंश कुलोत्पत्ति, चमरुप्पाओ - चमरोत्पात। भावार्थ - इस अवसर्पिणी काल में दस अच्छेरे - आश्चर्यजनक बातें हुई हैं वे इस प्रकार हैं - . १. उपसर्ग - तीर्थकर भगवान् का यह अतिशय होता है कि वे जहाँ विराजते हैं उसके चारों तरफ सौ योजन के अन्दर किसी प्रकार वैरभाव, मरी आदि रोग, दुर्भिक्ष आदि किसी प्रकार का उपद्रव नहीं होता । है किन्तु श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के छद्मस्थ अवस्था में तथा केवली अवस्था में देव, मनुष्य और तिर्यञ्च कृत कई उपसर्ग हुए थे। यह एक आश्चर्यभूत बात है । अनन्त काल में कभी कभी ऐसी बातें होती हैं अतः यह अच्छेरा कहलाता है। २. गर्भहरण - जातिमद के कारण भगवान् महावीर स्वामी का जीव देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में आकर उत्पन्न हुआ। शक्रेन्द्र की आज्ञा से हरिणेगमेषी देव ने उस गर्भ का संहरण करके महारानी त्रिशला देवी की कुक्षि में रख दिया था । तीर्थङ्कर की अपेक्षा यह भी अच्छेरा है । ३. स्त्री तीर्थ-तीर्थकर भगवान् पुरुष रूप में ही उत्पन्न होते हैं किन्तु इस अवसर्पिणी काल में उन्नीसवें तीर्थकर भगवान् मल्लिनाथ स्त्री रूप में पैदा हुए थे । यह तीसरा अच्छेरा है । ४. अभव्या परिषद:- त्याग प्रत्याख्यान के अयोग्य परिषद् - तीर्थङ्कर भगवान् को केवलज्ञान होने पर जब वे प्रथम धर्मोपदेश देते हैं उसमें कोई न कोई व्यक्ति अवश्य चारित्र ग्रहण करता है किन्तु भगवान् महावीर स्वामी के प्रथम धर्मोपदेश में किसी ने चारित्र अङ्गीकार नहीं किया क्योंकि उसमें सिर्फ देवी और देव ही उपस्थित थे, देवी देव न तो संयम स्वीकार कर सकते हैं और न किसी प्रकार का त्याग प्रत्याख्यान ही कर सकते हैं । तीर्थङ्कर भगवान् की वाणी खाली गई । इस लिए यह एक अच्छेरा है । ५. कृष्ण का अपरकंका गमन - दो वासुदेवों का मिलन नहीं होता है किन्तु द्रौपदी को लेने के लिए कृष्ण वासुदेव धातकीखण्ड में अपरकंका नगरी में गये थे । जब वे द्रौपदी को लेकर लवणसमुद्र में आ रहे थे तब उनसे मिलने के लिए धातकीखण्ड के कपिल वासुदेव ने शंख बजाया था । इसके जवाब में कृष्ण वासुदेव ने भी वापिसं शंख बजाया । इस प्रकार दोनों वासुदेवों की शंखध्वनि का मिलान हुआ । यह भी एक अच्छेरा हुआ है । ६. चन्द्रसूर्यावतरण - उत्तर विक्रिया द्वारा बनाये हुए यान विमान में बैठ कर ही देव, तीर्थकर भगवान् के दर्शन करने के लिए आते हैं किन्तु जब भगवान् महावीर स्वामी कौशाम्बी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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