Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 383
________________ श्री स्थानांग सूत्र नगरी में विराजते थे उस समय चन्द्र और सूर्य ये दोनों ज्योतिषी देव अपने अपने शाश्वत विमान में बैठ कर एक साथ भगवान् के दर्शन के लिए आये थे । यह भी एक अच्छेरा है । ७. हरिवंशकुलोत्पत्ति लिये मर कर स्वर्ग में ही जाते हैं और उनके नाम से उनकी वंशपरम्परा नहीं चलती है किन्तु हरिवर्ष क्षेत्र के हरि और हरिणी युगलिए मर कर नरक में गये और उनके पीछे उनके नाम से हरिवंश परम्परा चली । इसलिए यह भी एक अच्छेरा है । ८. चमरोत्पात - भवनपति देव प्रथम देवलोक तक नहीं जाते हैं किन्तु चमरेन्द्र शक्रेन्द को पराजित करने के लिये प्रथम देवलोक की सुधर्मा सभा में गये । अतः यह भी एक अच्छेरा है । ९. अष्टशतसिद्ध - उत्कृष्ट अवगाहना वाले एक समय में १०८ सिद्ध नहीं होते हैं किन्तु भगवान् ऋषभदेव स्वामी के साथ उत्कृष्ट अवगाहना वाले १०८ व्यक्ति एक समय में सिद्ध हुए थे । अतः यह भी एक अच्छेरा है । १०. असंयतपूजा - नवमें तीर्थङ्कर भगवान् सुविधिनाथ स्वामी के मोक्ष जाने के कुछ समय बाद असंयतियों की पूजा हुई थी । सर्वदा काल संयतियों की ही पूजा होती हैं और वे ही पूजा सत्कार के योग्य हैं किन्तु इस अवसर्पिणी काल में असंयतियों की पूजा हुई थी । अतः यह भी एक अच्छेरा है । अनन्तकाल में इस अवसर्पिणी में ये दस अच्छेरे हुए थे । इसीलिए इस अवसर्पिणी को हुण्डावसर्पिणी कहते हैं । विवेचन - जो बात लोक में विस्मय एवं आश्चर्य की दृष्टि से देखी जाती हो ऐसी बात को अच्छेरा (आश्चर्य) कहते हैं। इस अवसर्पिणी काल में दस बातें आश्चर्यजनक हुई हैं, वे इस प्रकार है १. उपसर्ग २. गर्भहरण ३. स्त्री तीर्थंकर ४. अभव्या परिषद् ५. कृष्ण का अपरकंका गमन ६. चन्द्र सूर्य अवतरण ७. हरिवंश कुलोत्पत्ति ८. चमरोत्पात ९. अष्टशतसिद्धा १०. ' "असंयत पूजा । ये दस आश्चर्य हुए । इसका संक्षिप्त विवरण भावार्थ में दिया गया है। ३६६ छठा आश्चर्य चन्द्रसूर्य अवतरण है। इसका अर्थ कुछ आचार्य इस प्रकार करते हैं कि चन्द्र और सूर्य अपने मूल रूप से आ गये किन्तु यह अर्थ करना उचित नहीं है क्योंकि मूल रूप से तो देव और इन्द्र अनेक वक्त आते हैं जैसे कि तीर्थङ्करों के जन्म कल्याण के समय शक्रेन्द्र मूल रूप से अकेला आता है और तीर्थङ्कर भगवान् को मेरु पर्वत पर ले जाने के लिये वैक्रिय करके पांच रूप बनाता है। इसलिये 'मूल रूप से आना' ऐसा अर्थ नहीं करना चाहिए किन्तु मूल विमान लेकर आये ऐसा अर्थ करना चाहिए । इस विषय में टीकाकार ने भी लिखा है - 'भगवतो महावीरस्य वन्दनार्थमवतरणमाकाशात् समवसरणभूम्यां चन्द्रसूर्ययोः शाश्वत विमानोपेत्तयोर्बभूवेदमप्याश्चर्यमवैति ।' अर्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के दर्शन करने के लिए चन्द्र और सूर्य अपने-अपने शाश्वत विमान लेकर आ गये, यह भी एक आश्चर्य हुआ । रत्न काण्ड आदि की मोटाई इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणे कंडे दस जोयणसयाइं बाहल्लेणं पण्णत्ते । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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