Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 353
________________ ३३६ श्री स्थानांग सूत्र प्रारम्भ उसी दिन हो जाय उसे कोटिसहित कहते हैं । ४. नियन्त्रित - जिस दिन जिस पच्चक्खाण को करने का निश्चय किया है उस दिन उसे नियम पूर्वक करना, बीमारी आदि की बाधा आने पर भी उसे नहीं छोड़ना नियन्त्रित पच्चक्खाण है । यह पच्चक्खाण चौदह पूर्वधर, जिनकल्पी, वप्रऋषभनाराच संहनन वालों के लिए ही होता है । पहले स्थविरकल्पी भी इसे करते थे किन्तु अब यह विच्छिन्न हो गया है । ५. सागार पच्चक्खाण - जिस पच्चक्खाण में कुछ आगार अर्थात् अपवाद रखा जाय, उन आगारों में से किसी के उपस्थित होने पर त्याग का समय पूरा न होने पर पहले भी त्यागी हुई वस्तु काम में ले ली जाय तो पच्चक्खाण नहीं टूटता है, जैसे नवकारसी, पोरिसी आदि पच्चक्खाणों में अनाभोग आदि आगार है । ६. अनागार पच्चक्खाण - जिस पच्चक्खाण में महत्तरागार आदि आगार न हों । अनाभोग और सहसाकार तो उसमें भी होते हैं क्योंकि अनुपयोग से मुंह में अंगुली आदि पड़ जाने से या भूल से कुछ चीज मुंह में पड़ जाने से आगार न होने पर पच्चक्खाण के टूटने का डर रहता है । ७. परिमाणकृत - आहार पानी की दत्ति, घर, भिक्षा या भोजन के द्रव्यों की मर्यादा करना परिमाणकृत पच्चक्खाण है । ८. निरवशेष पच्चक्खाण - अशन, पान, खादिम, स्वादिम चारों प्रकार के आहार का सर्वथा त्याग करना निरवशेष पच्चक्खाण है । ९. संकेत पच्चक्खाण - गांठ, अंगुठी, मुट्ठी आदि के चिह्न को लेकर जो त्याग किया जाता है उसे संकेत पच्चक्खाण कहते हैं । १०. अद्धा पच्चक्खाण - . काल को लेकर जो पच्चक्खाण किया जाता है, जैसे पोरिसी दो पोरिसी आदि । ___ समाचारी - साधु के आचरण को अथवा भले आचरण को समाचारी कहते हैं । इसके दस भेद कहे गये हैं यथा - १. इच्छाकार - 'अगर आपकी इच्छा हो तो मैं अपना अमुक कार्य करूं अथवा आपकी इच्छा हो तो मैं आपका यह कार्य करूं' इस प्रकार गुरु महाराज से पूछना इच्छाकार कहलाता है। २. मिथ्याकार - संयम का पालन करते हुए कोई विपरीत आचरण हो गया हो तो उस पाप के लिए पश्चाताप करते हुए 'मिच्छामि दुक्कर' अर्थात् मेरा पाप निफल हो, ऐसा कहमा मिथ्याकार है । ३. तथाकार - सूत्रादि आगम के विषय में गुरु महाराज को कुछ पूछने पर जब गुरु महाराज उत्तर दें उस समय तथा कथा वार्ता एवं व्याख्यान के समय तहति - जैसा आप फरमाते हैं वह ठीक है' ऐसा कहना तथाकार है । ४. भावरिषकी - आवश्यक कार्य के लिए उपाय से बाहर निकलते समय 'आवस्सिया आवस्सिपा' अर्थात् आवश्यक कार्य के लिए मैं बाहर जाता हूँ' ऐसा कहना भावस्सिपा समाचारी है । ५. नैषेधिकी - बाहर से वापिस आकर उपाश्रय में प्रवेश करते समय 'निसीहिया निसीहिया' अर्थात् जिस आवश्यक कार्य के लिए मैं बाहर गया था वह कार्य करके मैं वापिस आ गया हूँ ' ऐसा कहना निसीहिया समाचारी है । ६. आपृच्छना - किसी कार्य में प्रवृत्ति करने से पहले 'क्या मैं यह कार्य कर' ऐसा गुरु महाराज से पूछना पृच्छना समाचारी है । ७. प्रतिपृच्छना - गुरु महाराज ने पहले जिस काम के लिए निषेध कर दिया है उसी कार्य में आवश्यकतानुसार फिर प्रवृत्त होना हो तो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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