Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
सराग सम्यग्-दर्शन,संज्ञाएँ, नैरयिक वेदना दसविहे सराग सम्मदंसणे पण्णत्ते तंजहा -
णिसग्गुवएसरुई आणारुई सुत्त बीयरुइमेव य ।
अभिगम वित्थाररुई किरिया संखेव धम्म रुई ॥१॥ दस सण्णाओ पण्णत्ताओ तंजहा - आहारसण्णा, भयसण्णा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा, कोहसण्णा, माणसण्णा, मायासण्णा, लोभसण्णा, लोगसण्णा, ओहसण्णा।णेरइया णं दस सण्णाओ एवं चेव । एवं णिरंतरं जाव वेमाणियाणं ।
णेरड्याणं दसविहं वेयणं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति तंजहा - सीयं, उसिणं, खुहं, पिवासं, कंडु, परग्झं, भयं, सोगं, जरं, वाहि॥१३१॥
कठिन शब्दार्थ - सराग सम्मदसणे - सराग सम्यग्दर्शन, उवएसरुई - उपदेश रुचि, वित्थाररुईविस्तार रुचि, संखेवरुई - संक्षेप रुचि, ओहसण्णा - ओघ संज्ञा, कंडु - खुजली, परग्झं - परतंत्रता, वाहिं - व्याधि ।
भावार्थ - सरागसम्यग् दर्शन दस प्रकार का कहा गया है यथा - १. निसर्ग रुचि - गुरु आदि के उपदेश के बिना स्वयमेव अपनी बुद्धि से तथा जातिस्मरण आदि ज्ञान द्वारा जीवादि तत्त्वों का स्वरूप जान कर उन पर श्रद्धा करना निसर्ग सम्यक्त्व है । २. उपदेश रुचि - केवली भगवान् का अथवा छद्मस्थ गुरु महाराज का उपदेश सुन कर जीवादि तत्त्वों पर श्रद्धा करना उपदेश रुचि है । ३. आज्ञा रुचि - मिथ्यात्व और कषायों की मन्दता के कारण गुरु महाराज की आज्ञा से जीवादि तत्त्वों पर श्रद्धा होना आज्ञा रुचि है। ४. सूः रुचि - अंगप्रविष्ट तथा अंगबाह्य सूत्रों को पढ़ कर जीवादि तत्त्वों पर श्रद्धा : करना सूत्र रुचि है। ५. बीज रुचि - जिस तरह जल पर तेल की बूंद फैल जाती है, एक बीज बोने से सैकड़ों बीजों की प्राप्ति हो जाती है उसी तरह क्षयोपशम के बल से एक पद, हेतु या दृष्टान्त को सुन कर अपने आप बहुत पद, हेतु तथा दृष्टान्तों को समझ कर श्रद्धा करना बीजरुचि है । ६. अभिगम रुचि - आचाराङ्ग से लेकर दष्टिवाद तथा दसरे सभी सिद्धान्तों को अर्थ सहित पढ कर श्रद्धा करना अभिगम रुचि है । ७. विस्तार रुचि - द्रव्यों के सभी भावों को प्रमाणों तथा नयों द्वारा जान कर श्रद्धा करना विस्ताररुचि है । ८. क्रिया रुचि - चारित्र, तप, विनय, पांच समिति, तीन गुप्ति आदि क्रियाओं का शुद्ध रूप से पालन करते हुए समकित की प्राप्ति होना क्रिया रुचि है । ९. संक्षेप रुचि - जिनवचनों का विस्तार पूर्वक ज्ञान न होने पर भी थोड़े से पदों को सुन कर श्रद्धा होना संक्षेप रुचि है । १०. धर्म रुचि - वीतराग द्वारा प्रतिपादित द्रव्य और शास्त्र का ज्ञान होने पर श्रद्धा होना धर्मरुचि है।
दस संज्ञाएं कही गई हैं यथा - आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा, क्रोधसंज्ञा, मानसंज्ञा, मायासंज्ञा, लोभसंज्ञा, लोकसंज्ञा - सामान्यज्ञान, ओघसंज्ञा - विशेष ज्ञान ।
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