Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 354
________________ स्थान १० ३३७ गुरु महाराज से पूछना कि 'भगवन् ! आपने पहले इस कार्य के लिए मना किया था किन्तु यह कार्य जरूरी है, आप फरमावें तो करूं' ऐसा पूछना प्रति पृच्छना समाचारी है । ८. छन्दना - लाये हुए आहार आदि के लिए साधु को आमन्त्रण देना । जैसें - यदि आपके उपयोग में आ सके तो यह वस्तु आप ग्रहण कीजिये । ऐसा कहना छन्दना समाचारी है । ९. निमन्त्रणा - आहार लाने के लिए साधु को पूछना । जैसे 'क्या आपके लिए आहार आदि लाऊँ ?' ऐसा पूछना निमंत्रणा समाचारी है । १०. उपसंपद् - ज्ञानादि प्राप्त करने के लिए अपना गच्छ छोड़ कर किसी विशेष ज्ञान वाले साधु के पास जाना उपसंपद् समाचारी है। - विवेचन - अमुक समय के लिये पहले से ही किसी वस्तु के त्याग कर देने को प्रत्याख्यान कहते हैं। प्रत्याख्यान के दस भेदों का स्वरूप भावार्थ में स्पष्ट कर दिया है। भगवती सूत्र शतक ७ उद्देशक २ में इनका वर्णन आया है। समाचारी के दस भेदों का वर्णन भगवती सूत्र शतक २५ उद्देशक ७ एवं उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २६ गाथा २ से ७ में भी विस्तार से आया है। 'भगवान् महावीर स्वामी के दस महा स्वप्न समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिम राइयंसि इमे दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे तंजहा - एगं च णं महाघोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुमिणे पराजियं पासित्ता णं पडिबुद्धे । एगं च महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । एगं च णं महं दामदुर्ग सव्वरयणामयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । एगं च णं महं सेयं गोवग्गं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमियं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । एगं च णं महासागर उम्मिवीइसहस्सकलियं भुयाहिं तिण्णे सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । एगं च णं महं दिणयरं तेयसा जलंतं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । एगं च णं महं हरिवेरुलियवण्णाभेणं णिययेणं अंतेणं माणुसुत्तरं पव्वयं सव्वओ समंता आवेढियं परिवेढियं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धे । एगं च णं महं मंदरे पव्वए मंदरचूलियाओ उवरि सीहासणवरगयं अत्ताणं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे । जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुमिणे पराइयं पासित्ता णं पडिबुद्धे, तण्णं समणेणं भगवया महावीरेणं मोहणिजे कम्मे मूलाओ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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