Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान १०
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महासुमिणे - महास्वप्न, पडिबुद्धे - प्रतिबुद्ध (जागृत), महाघोररूवदित्तधरं - महाभयंकर रूप वाले, तालपिसायं - ताड वृक्ष के समान पिशाच को, सुक्किल पक्खगं - श्वेत पंख वाले, पुंसकोइलगं - पुंस्कोकिल को, दामदुर्ग- माला युगल को, गोवग्गं - गो वर्ग-गायों के झुण्ड को, उम्मवीइसहस्सकलियंहजारों लहरों और कल्लोलों से युक्त, हरिवेरुलिय वण्णाभेणं - नील वैडूर्य मणि के समान, आवेढियंआवेष्टित, परिवेढियं - परिवेष्टित, चित्तविचित्तं - चित्रविचित्र। ___ भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी छद्मस्थ अवस्था की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देखकर जागृत हुए ।
वे इस प्रकार हैं - १. पहले स्वप्न में एक महा भयंकर रूप वाले ताड़वृक्ष के समान पिशाच को पराजित किया हुआ देखा । २. दूसरे स्वप्न में एक महान् सफेद पंख वाले पुंस्कोकिल अर्थात् पुरुष जाति के कोयल को देखा । साधारणतया कोयल के पंख काले होते हैं किन्तु भगवान् ने स्वप्न में सफेद पंख वाले कोयल को देखा । ३. तीसरे स्वप्न में एक महान् विचित्र रंगों के पंख वाले पुंस्कोयल को देखा । ४. चौथे स्वप्न में एक महान् सर्वरत्नमय मालायुगल अर्थात् दो मालाओं को देखा । ५. पांचवें स्वप्न में एक विशाल श्वेत गायों के झुण्ड को देखा । ६. छठे स्वप्न में चारों तरफ से खिले हए फूलों वाले एक विशाल पद्मसरोवर को देखा । ७. सातवें स्वप्न में हजारों लहरों और कल्लोलों से युक्त एक महान् सागर को भुजाओं से तिर कर पार पहुंचे । ८. आठवें स्वप्न में अत्यन्त तेज से जाज्वल्यमान सूर्य को देखा । ९. नवमें स्वप्न में मानुष्योत्तर पर्वत को नील वैडूर्य मणि के समान अपने अन्तर भाग से चारों तरफ से आवेष्टित और परिवेष्टित देखा । १०. दसवें स्वप्न में सुमेरु पर्वत की मंदर चूलिका नाम की चोटी पर श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठे हुए अपने आपको देखा । उपरोक्त दस स्वप्न देख कर भगवान् महावीर स्वामी जागृत हुए।
इन दस स्वप्नों का फल इस प्रकार है - १. प्रथम स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने एक महान् भयङ्कर रूप वाले पिशाच को पराजित किया । इसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने मोहनीय कर्म को समूल नष्ट कर दिया । २. दूसरे स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने एक महान् सफेद पंख वाले पुंस्कोयल को देखा । इसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने शीघ्र ही शुक्लध्यान प्राप्त किया । ३. तीसरे स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने विचित्र पांखों वाले एक महान् पुंस्कोयल को देखा । इसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने विचित्र यानी विविध विचार युक्त स्वसमय और परसमय को बतलाने वाली द्वादशाङ्गी रूप गणिपिटक का कथन किया, सामान्य रूप से प्रतिपादन किया, प्ररूपणा की, दर्शित किया, प्रदर्शित किया, भली प्रकार प्रदर्शित किया । द्वादशाङ्ग के नाम इस प्रकार हैं - आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग,-सूयगडांग, ठाणांगस्थानाङ्ग, समवायाङ्ग, व्याख्याप्रज्ञप्ति-भगवती सूत्र, ज्ञाताधर्मकथाङ्ग, उपासकदशाङ्ग, अन्तकृद्दशाङ्ग
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