Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 347
________________ श्री स्थानांग सूत्र अपना अधिकार हटा कर दूसरे का अधिकार कर देना दान है । दान के दस भेद कहे गये हैं यथा १. अनुकम्पादान - किसी दीन दुःखी, अनाथ प्राणी पर अनुकम्पा दया करके जो दान दिया जाता है वह अनुकम्पादान है । २. संग्रहदान अपने पर आपत्ति आदि आने पर सहायता प्राप्त करने के लिए किसी को कुछ देना संग्रह दान है । यह दान अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए दिया जाता है इसलिए मोक्ष का कारण नहीं होता है । ३. भयदान राजा, मंत्री, पुरोहित आदि के भय से अथवा राक्षस, पिशाच आदि के डर से दिया जाने वाला दान भयदान कहलाता है। ४. कारुण्यदान - पुत्र आदि के वियोग के कारण होने वाला शोक कारुण्य कहलाता है। शोक के समय पुत्र आदि के नाम से दान देना कारुण्यदान है । ५. लज्जादान लज्जा के कारण जो दान दिया जाता है वह लज्जादान है । अर्थात् बहुत से आदमियों के बीच बैठे हुए किसी व्यक्ति से जब कोई आकर मांगने लगता है तब लोकलज्जा के कारण कुछ देना लज्जादान है। ६. गारवदान या गौरवदान यश कीर्ति एवं प्रशंसा प्राप्त करने के लिए गर्वपूर्वक देना गौरवदान है । ७. अधर्मदान हिंसा, झूठ चोरी आदि कार्यों को पुष्ट करने की बुद्धि से दिया जाने वाला दान अधर्मदान कहलाता है । ८. धर्मदान धर्म कार्यों को पुष्ट करने के लिए दिया जाने वाला दान धर्मदान है । ९. करिष्यतिदान - भविष्य में प्रत्युपकार की आशा से जो दिया जाता है वह करिष्यतिदान है । १०. कृतदान पहले किये हुए उपकार के बदले में जो कुछ दिया जाता है वह कृतदान कहलाता है । दस प्रकार की गति कही गई है यथा - नरकगति, नरकविग्रह गति, तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्च विग्रहगति, मनुष्यगति, मनुष्यविग्रह गति, देवगति, देव विग्रहगति, सिद्धिगति, सिद्धि विग्रहगति । मुण्ड - जो किसी वस्तु को छोड़े उसे मुण्ड कहते हैं । इसके दस भेद हैं यथा श्रोत्रेन्द्रिय मुण्ड यावत् स्पर्शनेन्द्रिय मुण्ड अर्थात् पांचों इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति का त्याग करने वाला । क्रोधमुण्ड यावत् लोभमुण्ड अर्थात् क्रोध, मान, माया, लोभ इन चार कषाय का त्याग करने वाला । शिरमुण्ड - शिर मुंडाने वाला अर्थात् दीक्षा लेने वाला । ३३० - संख्यान - जिस उपाय से किसी वस्तु की संख्या या परिमाण का पता लगे उसे संख्यान कहते हैं। इसके दस भेद कहे गये हैं यथा - १. परिकर्म जोड़, बाकी, गुणा, भाग आदि को परिकर्म कहते हैं । २. व्यवहार - श्रेणी व्यवहार आदि पाटी गणित में प्रसिद्ध अनेक प्रकार का गणित व्यवहार संख्यान है । ३. रज्जू - रस्सी से नाप कर लम्बाई चौड़ाई आदि का पता लगाना रज्जुसंख्यान है । इसी को क्षेत्रगणित कहते हैं । ४. राशि - धान आदि के ढेर का माप कर या तोल कर परिमाण जानना राशि संख्यान है । इसी को राशि व्यवहार भी कहते हैं । ५. कलासवर्ण वस्तु के अंशों को बराबर करके जो गणित किया जाता है वह कलासवर्ण संख्यान है । ६. यावततावत् एक संख्या को उसी से गुणा करना अथवा किसी संख्या का एक से लेकर जोड़ निकालने लिए गुणा आदि करना यावत्तावत् संख्यान Jain Education International - - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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