Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 349
________________ ३३२ श्री स्थानांग सूत्र अर्थात् - राजा, राक्षस या रक्षा करने वाले, पुरोहित, मधु मुख अर्थात् दुष्ट पुरुष जो मुंह का मीठा और दिल का काला हो, मायावी, दण्ड अर्थात् सजा वगैरह देने वाले राजपुरुष इत्यादि को भय से बचने के लिये कुछ देना भय दान है। ४. कारुण्य दान - पुत्र आदि के वियोग के कारण होने वाला शोक कारुण्य कहलाता है। शोक के समय पुत्र आदि के नाम से दान देना कारुण्य दान है। इसको आगम में कालुणिए' दान कहा है। ५. लज्जा दान - लज्जा के कारण जो दान दिया जाता है वह लज्जा दान है। अभ्यर्थितः परेण तु यहानं जनसमूहगतः। परचित्तरक्षणार्थ लज्जायास्तद्भवेद्दानम्॥ अर्थात् - जनसमूह के अन्दर बैठे हुए किसी व्यक्ति से जब कोई आकर मांगने लगता है उस समय लज्जा के वश होकर मांगने वाले को कुछ दे देना लज्जादान कहलाता है। . ६. गौरव दान - यश कीर्ति या प्रशंसा प्राप्त करने के लिए गर्व पूर्वक दान देना गौरवदान है। नटनर्तमुष्टिकेभ्यो दानं सम्बन्धिबन्धुमित्रेभ्यः। यहीयते यशोऽर्थ गर्वेण तु तद्भवेदानम्॥ अर्थात् - नट, नाचने वाले, पहलवान्, सगे सम्बन्धी या मित्रों को यश प्राप्ति के लिये गर्वपूर्वक जो दान दिया जाता है उसे गौरव दान कहते हैं। ७. अधर्मदान - अधर्म की पुष्टि करने वाला अथवा जो दान अधर्म का कारण है वह अधर्मदान हैहिंसानृतचौर्योधतपरदारपरिग्रहप्रसक्तेभ्यः।। यहीयते हि तेषां तजानीयादधर्माय॥ हिंसा, झूठ, चोरी, परदारगमन और आरम्भ समारम्भ रूप परिग्रह में आसक्त लोगों को जो कुछ दिया जाता है वह अधर्मदान है। ८. धर्मदान - धर्मकार्यों में दिया गया अथवा धर्म का कारणभूत दान धर्मदान कहलाता है। समतृणमणिमुक्तेभ्यो यहानं दीयते सुपात्रेभ्यः। अक्षयमतुलमनन्तं तदानं भवति धर्माय॥ जिन के लिए तृण, मणि और मोती एक समान हैं ऐसे सुपात्रों को जो दान दिया जाता है वह दान धर्मदान होता है। ऐसा दान कभी व्यर्थ नहीं होता। उसके बराबर कोई दूसरा दान नहीं हैं। वह दान अनन्त सुख का कारण होता है। ९. करिष्यतिदान - भविष्य में प्रत्युपकार की आशा से जो कुछ दिया जाता है वह करिष्यतिदान है। प्राकृत में इसका नाम 'काही' दान है। १०. कृतदान - पहले किए हुए उपकार के बदले में जो कुछ किया जाता है उसे कृतदान कहते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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