Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 348
________________ स्थान १० ३३१ कहलाता है । जैसे १० तकं का योगफल निकालने के लिए दस संख्या को एक अधिक अर्थात् ११ से गुणा किया जाय तो, गुणनफल ११० हुआ । उसको दो से भाग देने पर ५५ निकल आये । यह १० तक की संख्या का योगफल है । ७. वर्ग - किसी संख्या को उसी से गुणा करना वर्गसंख्यान है । जैसे २ को २ से गुणा करने पर ४ हुए । यह २ का वर्गसंख्यान है । ८. घन - एक सरीखी तीन संख्याएं रख कर उन्हें उत्तरोत्तर गुणा करना घन संख्यान है । जैसे - २,२,२ । यहाँ २ को २ से गुणा करने पर ४ हुए। ४ को २ से गुणा करने पर ८ हुए । यह २ का घनसंख्यान है । ९. वर्गवर्ग - वर्ग अर्थात् प्रथम संख्या के गुणनफल को उसी वर्ग से गुणा करना वर्गवर्गसंख्यान है । जैसे २ का वर्ग हुआ ४ । ४ का वर्ग हुआ १६ । १६ संख्या २ का वर्गवर्ग है । १०. कल्प - आरी से लकड़ी को काट कर उसका परिमाण जानना कल्पसंख्यान कहलाता है। . विवेचन - दान - अपने अधिकार में रही हुई वस्तु दूसरे को देना दान कहलाता है, अर्थात् उस वस्तु पर से अपना अधिकार हटा कर दूसरे का अधिकार कर देना दान है। दान के दस भेद हैं - १. अनुकम्पा दान - किसी दुःखी, दीन, अनाथ प्राणी पर अनुकम्पा (दया) करके जो दान दिया जाता है, वह अनुकम्पा दान है। वाचक मुख्य श्री उमास्वाति ने अनुकम्पा दान का लक्षण करते हुए कहा है - कृपणेऽनाथदरिद्रे व्यसनप्राप्ते च रोगशोकहर्ते। यहीयते कृपार्थात् अनुकम्प तद्भवेदानम्॥ । अर्थात् - कृपण (दीन), अनाथ, दरिद्र, दुखी, रोगी, शोकग्रस्त आदि प्राणियों पर अनुकम्पा करके जो दान दिया जाता है वह अनुकम्पा दान है। ... २. संग्रह दान - संग्रह अर्थात् सहायता प्राप्त करना। आपत्ति आदि आने पर सहायता प्राप्त करने के लिए किसी को कुछ देना संग्रह दान है। यह दान अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए होता है, इसलिए मोक्ष का कारण नहीं होता है। अभ्युदये व्यसने वा यत् किञ्चिद्दीयते सहायतार्थम्। तत्संग्रहतोऽभिमतं मुनिभिर्दानं न मोक्षाय॥ अर्थात् - अभ्युदय में या आपत्ति आने पर दूसरे की सहायता प्राप्त करने के लिये जो दान दिया जाता है वह संग्रह (सहायता प्राप्ति) रूप होने से संग्रह दान है। ऐसा दान मोक्ष के लिए नहीं होता है। ३. भयदान - राजा, मंत्री, पुरोहित आदि के भय से अथवा राक्षस एवं पिशाच आदि के डर से दिया जाने वाला दान भय दान है। . राजारक्षपुरोहितमधुमुखमाविल्लदण्डपाशिषु च। यहीयते भयात्तिद्भयदानं बुध यम्॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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