Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान १०
२९१ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 मेरे मनोज्ञ शब्द स्पर्श रस रूप गन्ध को यह लेता है और लेवेगा, इस विचार से क्रोध की उत्पत्ति होती है । मेरे साथ अमनोज्ञ शब्दादि का संयोग किया है और संयोग करेगा, इस विचार से क्रोध की उत्पत्ति होती है । मेरे मनोज्ञ शब्दादि को यह ले गया है, ले जाता है, ले जायगा इस विचार से क्रोध की उत्पत्ति होती है । अमनोज्ञ शब्दादि का मेरे साथ इसने संयोग किया है, यह संयोग करता है, संयोग करेगा, इस विचार से क्रोध की उत्पत्ति होती है । मेरे मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्दादि को इसने लिया है, लेता है, लेगा तथा संयोग किया है, संयोग करता है, संयोग करेगा, इस विचार से क्रोध की उत्पत्ति होती है ।
__ मैं आचार्य और उपाध्याय जी के साथ सम्यक् बर्ताव करता हूँ किन्तु आचार्य और उपाध्यायजी मेरे से विपरीत रहते हैं, इस विचार से क्रोध की उत्पत्ति होती है ।
दस प्रकार का संयम कहा गया है । यथा - पृथ्वीकाय संयम, अप्काय संयम, तेउकाय संयम, वायुकाय संयम, वनस्पतिकाय संयम, बेइन्द्रिय संयम, तेइन्द्रिय संयम, चतुरिन्द्रिय संयम और अजीवकाय संयम । दस प्रकार का असंयम कहा गया है। यथा- पृथ्वीकाय असंयम, अप्कायअसंयम, तेउकाय असंयम, वायुकाय असंयम, वनस्पतिकाय असंयम यावत् अजीवकाय असंयम । दस प्रकार का संवर कहा गया है । श्रोत्रेन्द्रिय संवर यावत् स्पर्शनेन्द्रिय संवर, मन संवर, वचन संवर, काय संवर, उपकरण संवर और सूची कुशाग्र मात्र संवर । दस प्रकार का असंवर कहा गया है । यथा - श्रोत्रेन्द्रिय असंवर यावत् सूची कुशाग्र मात्र असंवर ।
विवेचन - जो पुद्गल शरीर से अभिन्न है या विवक्षित स्कन्ध से अपृथक्भूत हैं वे दस कारणों से चलायमान होते हैं अर्थात् एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित होते हैं। ये ही दस कारण शरीर में हलन चलन के भी हैं।
संयमी के लिये क्रोध करना हानिप्रद एवं अनुचित है। अतः सूत्रकार ने क्रोध उत्पत्ति के दस स्थानों का वर्णन किया है। साधक को इन क्रोध उत्पन्न होने के कारणों का त्याग करना चाहिये। क्रोध पर संयम और संवर से विजय पायी जाती है अतः सूत्रकार ने दस प्रकार के संयम और इससे विपरीत दस प्रकार के असंयम का वर्णन किया है। ___ संवर - इन्द्रिय और योगों की अशुभ प्रवृत्ति से आते हुए कर्मों को रोकना संवर है। इसके दस भेद हैं -
१. श्रोत्रेन्द्रिय संवर २. चक्षुरिन्द्रिय संवर ३. घ्राणेन्द्रिय संवर ४. रसनेन्द्रिय संवर ५. स्पर्शनेन्द्रिय संवर ६. मन संवर ७. वचन संवर ८. काय संवर ९. उपकरण संवर १०. सूचीकुशाग्र संवर।
पाँच इन्द्रियाँ और तीन योगों की अशुभ/प्रवृत्ति को रोकना तथा उन्हें शुभ व्यापार में लगाना क्रम : से श्रोत्रेन्द्रिय आदि आठ संवर है।
९. उपकरण संवर - जिन वस्त्रों के पहनने में हिंसा हो अथवा जो वस्त्रादि न कल्पते हों, उन्हें न
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