Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
स्थान १०
२९९
पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च की अपेक्षा द्रव्य क्षेत्र काल भाव से इस प्रकार अस्वाध्याय माना गया है । द्रव्य से - तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय की हड्डी, मांस और खून अस्वाध्याय के कारण हैं । क्षेत्र से - साठ हाथ की दूरी तक ये अस्वाध्याय के कारण हैं । काल से - उपरोक्त तीनों में से किसी के होने पर तीन पहर तक अस्वाध्याय काल माना गया है किन्तु बिल्ली आदि के द्वारा चूहे आदि को मार देने पर एक रात दिन तक अस्वाध्याय माना गया है । भाव से - नन्दीसूत्र आदि अस्वाध्याय काल में नहीं पढना चाहिए ।
मनुष्य सम्बन्धी हड्डी, मांस और खून के होने पर भी इसी तरह समझना चाहिए सिर्फ इतनी विशेषता है कि क्षेत्र की अपेक्षा एक सौ (१००) हाथ की दूरी तक । काल की अपेक्षा - एक दिन रात
और समीप में किसी स्त्री के रजस्वला होने पर तीन दिन का अस्वाध्याय होता है । लड़की पैदा होने पर आठ दिन और लड़का पैदा होने पर सात दिन तक अस्वाध्याय रहता है । हड्डियों की अपेक्षा से ऐसा जानना चाहिए कि जीव द्वारा शरीर को छोड़ दिया जाने पर यानी मृत्यु हो जाने पर यदि उसकी हड्डियाँ न जली हों तो एक सौ (१००) हाथ के अन्दर बारह वर्ष तक अस्वाध्याय का कारण होती है । किन्तु अग्नि द्वारा दाह संस्कार कर दिया जाने पर या पानी में बह जाने पर हड्डियां अस्वाध्याय का कारण नहीं रहती है । हड्डियों को जमीन में गाड़ देने पर अस्वाध्याय माना गया है ।
४. अशुचि सामन्त - अशुचि रूप विष्टा आदि यदि नजदीक में पड़े हुए हों तो अस्वाध्याय होता है । इसके लिए ऐसा माना गया है कि जहां खून, विष्टा आदि अशुचि पदार्थ दृष्टि गोचर होते हों तथा उनकी दुर्गन्ध आती हों वहाँ तक अस्वाध्याय माना गया है ।
५. श्मशान सामन्त - श्मशान के नजदीक यानी जहाँ मनुष्य आदि का मृतक शरीर पडा हुआ हो, उसके आसपास कुछ दूरी तक यानी एक सौ (१००) हाथ तक अस्वाध्याय रहता है ।
. ६. चन्द्रग्रहण और ७. सूर्यग्रहण के समय भी अस्वाध्याय माना गया है । इसके लिए समय का परिमाण इस प्रकार माना गया है कि चन्द्र या सूर्य का ग्रहण होने पर यदि चन्द्र और सूर्य का सम्पूर्ण ग्रहण हो जाय तो ग्रसित होने के समय से लेकर चन्द्रग्रहण में उस रात्रि और दूसरा एक दिन रात छोड़कर तथा सूर्यग्रहण में वह दिन और दूसरा एक दिन रात छोड़ कर स्वाध्याय करना चाहिए किन्तु यदि उसी रात्रि अथवा उसी दिन में ग्रहण से छुटकारा हो जाय तो चन्द्रग्रहण में उसी रात्रि का शेष भाग और सूर्यग्रहण में उस दिन का शेष भाग और उस रात्रि तक अस्वाध्याय रहता है । चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण का अस्वाध्याय आन्तरिक्ष यानी आकाश सम्बन्धी होने पर भी यहाँ पर इसकी विवक्षा नहीं की गई है । किन्तु चन्द्र और सूर्य का विमान पृथ्वीकायिक होने से इनकी गिनती औदारिक सम्बन्धी अस्वाध्याय में की गई है।
८. पतन - पतन नाम मरण का है । राजा, मन्त्री, सेनापति या ग्राम के ठाकुर की मृत्यु हो जाने पर अस्वाध्याय माना गया है । राजा की मृत्यु होने पर जब तक दूसरा राजा गद्दी पर न बैठे तब तक
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org