Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 जाने जाते हैं यथा - अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषक्, पूर्व भाद्रपदा, उत्तर भाद्रपदा और रेवती । अश्विनी आदि सात नक्षत्र दक्षिण द्वार वाले कहे गये हैं यथा - अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशीर्ष आर्द्रा और पुनर्वसु । पुष्य आदि सात नक्षत्र पश्चिम द्वार वाले कहे गये हैं यथा - पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त और चित्रा । स्वाति आदि सात नक्षत्र उत्तर द्वार वाले कहे गये हैं यथा - स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढा और उत्तराषाढा ।
विवेचन - साता वेदनीय और असाता वेदनीय कर्म का विपाक सात-सात प्रकार का कहा है। जब साता वेदनीय का उदय होता है तब जीव सुख का अनुभव करता है और जब असाता वेदनीय का उदय होता है तब जीव दुःख का अनुभव करता है। पांचों इन्द्रियों, मन और वचन में शुभता का होना साता है और इनमें अशुभता का होना असाता है।
सात कूट, कुलकोटि, पुद्गल ग्रहण जंबूहीवे दीवे सोमणसे वक्खारपव्वए सत्त कूडा पण्णत्ता तंजहा - . सिद्ध सोमणसे तह बोद्धव्वे, मंगलावई कूडे ।
देवकुरु विमल कंचण, विसिट्ठकूडे य बोद्धव्वे ॥ १॥ , जंबूहीवे दीवे गंधमायणे वक्खार पव्वए सत्त कडा पण्णत्ता तंजहा
सिद्धे य गंधमायणे बोद्धव्वे, गंधिलावई कूडे ।
उत्तरकुरु फलिहे, लोहियक्ख आणंदणे चेव ॥२॥ बेइंदियाणं सत्त जाइकुलकोडीजोणी पमुह सयसहस्सा पण्णत्ता । जीवा णं सत्त ट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा, चिणंति वा, चिणिस्संति वा तंजहा - गैरइयणिव्यत्तिए जाव देवणिव्वत्तिए एवं चिण जाव णिज्जरा चेव । सत्त पएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता । सत्त पएसोगाढा पोग्गला जाव सत्त गुण लुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता॥८३॥
॥सत्तमं ठाणं समत्तं । सत्तमं अज्झयणं समत्तं ॥ कठिन शब्दार्थ - वक्खारपव्वए - वक्षस्कार पर्वत, सत्त जाइकुल कोडी जोणी पमुह सय सहस्सा - योनि से उत्पन्न हुई कुल कोडी सात लाख, सत्तट्ठाणणिव्वत्तिए - सात स्थान निर्वर्तित ।
भावार्थ - इस जम्बूद्वीप में सोमनस वक्षस्कार पर्वत पर सात कूट कहे गये हैं यथा - सिद्ध, सोमनस, मङ्गलावती, देवकुरु, विमल, काञ्चन और विशिष्ट । इस जम्बूद्वीप में गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत पर सात कूट कहे गये हैं यथा - सिद्ध, गन्धमादन, गन्धिलावती, उत्तरकुरु, स्फटिक, लोहिताक्ष
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