Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
वहाँ उस नैरयिक के शरीर का वर्ण काला काली प्रभावाला यावत् अत्यन्त काला होगा । वहाँ वह अत्यन्त उज्वल यावत् दुःसह वेदना को वेदेगा । वह श्रेणिक राजा का जीव उस नरक से निकल कर आगामी उत्सर्पिणी काल में इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में वैताढ्य पर्वत के पास में पुण्ड देश के शतद्वार नगर में समुचि कुलकर की भद्रा भार्या की कुक्षि में पुरुष रूप से पुत्र रूप से उत्पन्न होगा । तत्पश्चात् वह भद्रा भार्या पूरे नौ महीने और साढे सात रात दिन व्यतीत होने पर सुकोमल हाथ पैर वाले परिपूर्ण पांचों इन्द्रियों वाले लक्षण और व्यञ्जनों से युक्त यावत् सुन्दर रूप वाले पुत्र को जन्म देगी । जिस ० रात्रि में उस बालक का जन्म होगा उसी रात्रि में शतद्वार नगर के बाहर और अन्दर सब जगह भारप्रमाण * और कुम्भप्रमाण पद्म यानी कमलों की वर्षा और रत्नों की वर्षा होगी । ...
साठ आढक का एक कुम्भ होता है । उस कुम्भ प्रमाण अर्थात् घटप्रमाण ।...
तत्पश्चात् ग्यारह दिन बीत जाने पर बारहवें दिन उस बालक के मातापिता इस प्रकार का गुण संयुक्त गुण निष्पन्न नाम रखने का विचार करेंगे कि - चूंकि हमारे इस पुत्र के उत्पन्न होने पर शतद्वार नगर के भीतर और बाहर सब जगह भार प्रमाण और कुम्भप्रमाण कमलों की और रत्नों की वर्षा हुई थी। इसलिए हमारे इस पुत्र का नाम महापद्य रखना ठीक है। ऐसा विचार करके उस बालक के मातापिता उस बालक का 'महापद्म' नाम रखेंगे। तत्पश्चात् उसके माता-पिता महापद्म कुमार को आठ वर्ष से अधिक हुआ जान कर महान् ठाठपाट से उसका राज्याभिषेक करेंगे । तब वह राजा होगा। तब वह महान् राजा होकर राज्य करेगा। तत्पश्चात् किसी एक समय महर्द्धिक यावत् महान् ऐश्वर्य वाले पूर्णभद्र
और माणिभद्र ये दो देव उस महापद्म राजा के सेना का कार्य करेंगे। तब शतद्वार नगर में बहुत से राजा, युवराज, माडंबिक, कौटुमिक, इभ्य, सेठ, सेनापति, सार्थवाह आदि परस्पर एक दूसरे को सम्बोधित करके इस प्रकार कहेंगे कि-हे देवानुप्रियो! महर्द्धिक यावत् महान् ऐश्वर्य वाले पूर्णभद्र और माणिभद्र ये दो देव हमारे महापद्म राजा के सेना का कार्य करते हैं। इसलिए हमारे महापद्म राजा का दूसरा नाम देवसेन होवे। तब उस महापद्म राजा का दूसरा नाम देवसेन होगा। तब किसी समय उस देवसेन राजा के यहां निर्मल शंख के समान सफेद चार दांत वाला हस्तीरत्न यानी एक श्रेष्ठ हाथी उत्पन्न होगा। तब वह देवसेन राजा निर्मल शंख के समान सफेद चार दांत वाले उस हाथी पर चढ़ कर शतद्वार नगर के बीच में बारम्बार आवेगा और जावेगा । तब शतद्वार नगर में बहुत से राजा, युवराज, कोटवाल, सेठ, सेनापति आदि परस्पर एक दूसरे को सम्बोधित करके इस प्रकार कहेंगे कि - हे देवानुप्रियो! हमारे देवसेन राजा
० तीर्थदूरों का जन्म आधी रात के समय हुआ करता है । इसलिए यहाँ रजनी (रात्रि) शब्द दिया है।
*दो हजार पल का एक भार होता है अथवा पुरुष के द्वारा जितना बोझ आसानी से उठाया जा सकता है उतने बोझ को एक भार कहते हैं।
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