Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 तीर्थङ्कर के भी नौ गण और ग्यारह गणधर होंगे । हे आर्यो ! जैसे मैंने तीस वर्ष तक गृहस्थावास में रह कर फिर मुण्डित होकर यावत् दीक्षा ली> बारह वर्ष साढे छह महीने छद्मस्थ पर्याय का पालन करके तीस वर्ष में तेरह पक्ष कम यानी उनतीस वर्ष साढे पांच महीने केवलि पर्याय का पालन करके, इस प्रकार बयालीस वर्ष तक श्रमण पर्याय का पालन करके, कुल बहत्तर वर्ष की आयु पूर्ण करके सिद्ध होऊंगा यावत् सब दुःखों का अन्त करूंगा। इसी प्रकार महापद्म तीर्थकर भी तीस वर्षों तक गृहस्थावस्था में रह कर फिर दीक्षा लेंगे। बारह वर्ष साढे छह महीने छद्मस्थावस्था में रह कर उनतीस वर्ष साढे पांच महीने केवलि पर्याय में रह कर कुल बयालीस वर्ष श्रमण पर्याय में रह कर इस तरह कुल बहत्तर वर्ष की आयु पूरी करके सिद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे। .. . ___जो शील यानी स्वभाव और आचार - संयम पालन की क्रिया अरिहंत तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी के हैं । वही शील और आचार तीर्थङ्कर भगवान् महापद्म स्वामी का होगा ॥१॥
पश्चाद् भोग वाले नक्षत्र, विमानों की ऊँचाई, नववीथियों णव णक्खत्ता चंदस्स पच्छंभागा पण्णत्ता तंजहा -
अभिई सवणो धणिट्ठा, रेवई अस्सिणी मग्गसिर पूसो । __हत्थो चित्ता य तहा, पच्छं भागा णव हवंति ॥ १ ॥ आणयपाणयआरणअच्चएस कप्पेसु विमाणा णव जोयण सयाइं इं उच्चत्तेणं पण्णत्ता । विमलवाहणे णं कुलगरे णव धणुसयाइं इं उच्चत्तेणं होत्था । उसभे णं अरहा कोसलिए णं इमीसे ओसप्पिणीए णवहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं वीइक्कंताहिं तित्थे पवत्तिए । घणदंत लट्ठदंत गूढदंत सुहृदंत दीवाणं दीवा णव णव जोयण सयाई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता । सुक्कस्स णं महागहस्स णव विहीओ पण्णत्ताओ तंजहा - हयवीही, गयवीही, णागवीही वसह वीही गो वीही, उदग वीही, अय वीही, मिय वीही, वेसाणर वीही।
नो कषाय, कुलकोटि, पापकर्म, पुद्गलों की अनंतता णव विहे णोकसायवेयणिजे कम्मे पण्णत्ते तंजहा - इत्थीवेए, पुरिसवेए, णपुंसगवेए, हासे, रई, अरई, भये, सोगे, दुगुच्छे । चउरिदियाणं णव जाइकुलकोडि जोणीपमुह सयसहस्सा पण्णत्ता । भुयगपरिसप्पथलयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं णव जाइकुल कोडि जोणी पमुहसयसहस्सा पण्णत्ता । जीवा णं णव ठाण णिव्यत्तिए
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