Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान८.
२२१
प्रकुर्वक, अपरिस्सावी - अपरिस्रावी, णिज्जावए - निर्यापक, अवायदंसी - अपायदर्शी, अत्तदोसं - अपने दोषों की, आलोइत्तए - आलोयणा करने के लिए, छेयारिहे - छेदार्ह, मूलारिहे - मूलाई, इस्सरियमए - ऐश्वर्य मद।
भावार्थ - आठ गुणों से युक्त साधु आलोयणा देने के योग्य होता है यथा - आचारवान् - ज्ञानादि आचार वाला । आधारवान् - बताये हुए अतिचारों को मन मे धारण करने वाला । व्यवहारवान् - आगम आदि पांच प्रकार के व्यवहार को जानने वाला । अपव्रीडक - शर्म से अपने दोषों को छिपाने वाले शिष्य की मीठे वचनों से शर्म दूर करके अच्छी तरह आलोचना कराने वाला । प्रकुर्वक - आलोचित अपराध का प्रायश्चित्त देकर अतिचारों की शुद्धि कराने में समर्थ । अपरिस्रावी - आलोयणा करने वाले के दोषों को दूसरे के सामने प्रकट न करने वाला । निर्यापक - अशक्ति या और किसी कारण से एक साथ पूरा प्रायश्चित्त लेने में असमर्थ साधु को थोड़ा थोड़ा प्रायश्चित्त देकर निर्वाह कराने वाला । अपायदर्शी - आलोयणा नहीं करने में परलोक का भय तथा दूसरे दोष दिखाने वाला । आठ गुणों से युक्त साधु अपने दोषों की आलोयणा करने के योग्य होता है यथा - जाति सम्पन्न, कुल सम्पन्न, विनय सम्पन्न, ज्ञान सम्पन्न, दर्शन सम्पन्न, चारित्र सम्पन्न, क्षान्त अर्थात् क्षमाशील और दान्त अर्थात् इन्द्रियों का दमन करने वाला ।
प्रायश्चित्त - प्रमाद वश किसी दोष के लग जाने पर उसे दूर करने के लिए जो आलोयणा तपस्या आदि शास्त्र में बताई गई है उसे प्रायश्चित्त कहते हैं । प्रायश्चित्त आठ प्रकार का कहा गया है यथा - आलोयणा के योग्य, प्रतिक्रमण के योग्य, तदुभयाई - आलोयणा और प्रतिक्रमण दोनों के योग्य, विवेकार्ह - यानी अशुद्ध भक्त पानादि परिठवने योग्य । व्युत्सर्गार्ह यानी कायोत्सर्ग के योग्य, तप के योग्य छेदाह - दीक्षा पर्याय का छेद करने के योग्य और मूलाह - मूल के योग्य अर्थात् फिर से महाव्रत लेने के योग्य । मद स्थान यानी मद आठ प्रकार के कहे गये हैं यथा - जाति मद, कुल मद, बल मद, रूप मंद, तप मद, श्रुत मद, लाभ मद और ऐश्वर्य मद ।
विवेचन - सूत्रकार ने आलोचना सुनने वाले और आलोचना करने वाले के ८-८ गुण बताये हैं। यानी आठ गुणों से संपन्न अनगार को आलोचना सुनने का अधिकारी कहा है और जिस साधक में उपरोक्त आठ गुण होते हैं वही आलोचना कर सकता है। आलोचना सुन कर ही दोष निवृत्ति के लिए प्रायश्चित्त दिया जाता है अतः आगे के सूत्र में प्रायश्चित्त के आठ भेद बताये हैं। .
अक्रियावादी, महानिमित्त,वचन विभक्ति अट्ठ अकिरियावाई पण्णत्ता तंजहा - एगावाई, अणेगावाई, मियवाई, णिमित्तवाई, सायवाई, समुच्छेयवाई, णिययवाई, ण संति परलोगवाई । अट्ठविहे महाणिमित्ते पण्णत्ते तंजहा - भोमे, उप्पाए, सुविणे, अंतलिक्खे, अंगे, सरे लक्खणे, वंजणे । अट्ठविहा वयण विभत्ती पण्णत्ता तंजहा -
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