Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
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१. आचार्य से विरुद्धं चलने वाले साधु को। २. उपाध्याय से विरुद्ध चलने वाले को। ३. स्थविर से विरुद्ध चलने वाले को। ४. साधुकुल के विरुद्ध चलने वाले को। ५. गण के प्रतिकूल चलने वाले को। ६. संघ से प्रतिकूल चलने वाले को। ७. ज्ञान से विपरीत चलने वाले को। ८. दर्शन से विपरीत चलने वाले को। ९. चारित्र से विपरीत चलने वाले को। इन्हीं कारणों का सेवन करने वाले प्रत्यनीक कहलाते हैं। .
ब्रह्मचर्य गुप्ति नौ. ब्रह्म अर्थात् आत्मा में चर्या अर्थात् लीन होने को ब्रह्मचर्य कहते हैं। सांसारिक विषयवासनाएं जीव को आत्मचिन्तन से हटा कर बाह्य विषयों की ओर खींचती हैं। उनसे बचने का नाम ब्रह्मचर्यगुप्ति है, अथवा वीर्य के धारण और रक्षण को ब्रह्मचर्य कहते हैं। शारीरिक और आध्यात्मिक सभी शक्तियों का आधार वीर्य है। वीर्य रहित पुरुष लौकिक या आध्यात्मिक किसी भी तरह की सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये नौ बातें आवश्यक हैं। इनके बिना ब्रह्मचर्य का पालन नहीं हो सकता। वे इस प्रकार हैं - ।
१. ब्रह्मचारी को स्त्री, पशु और नपुंसकों से अलग स्थान में रहना चाहिए। जिन स्थान में देवी, मानुषी या तिथंच का वास हो, वहाँ न रहे। उनके पास रहने से विकार होने का डर है।।
__२. स्त्रियों की कथा वार्ता न करे। अर्थात् अमुक स्त्री सुन्दर है या अमुक देशवाली ऐसी होती है, इत्यादि बातें न करे।
३. स्त्री के साथ एक आसन पर न बैठे, उनके उठ जाने पर भी एक मुहूर्त तक उस आसन पर न बैठे अथवा स्त्रियों में अधिक न आवे जावे। उनसे सम्पर्क न रक्खे।
४. स्त्रियों के मनोहर और मनोरम अङ्गों को न देखे। यदि अकस्मात् दृष्टि पड़ जाय तो उनका ध्यान न करे और शीघ्र ही उन्हें भूल जाय।
५. जिसमें घी टपक रहा हो ऐसा पक्वान्न या गरिष्ठ भोजन न करे, क्योंकि गरिष्ठ भोजन विकार उत्पन्न करता है।
६. रूखा सूखा भोजन भी अधिक परिमाण में न करे। आधा पेट अन्न से भरे, आधे में से दो हिस्से पानी से तथा एक हिस्सा हवा के लिए छोड़ दे। इससे मन स्वस्थ रहता है।
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