Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
और लम्बाई बारह योजन की होती है । इनका आकार पेटी के समान होता है । और इनका स्थान गङ्गा नदी का मुख है ।। ११॥
इनके किंवाड़ वैडूर्य मणि के बने हुए होते हैं । ये सोने की बनी हुई अनेक प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण होती है। ये चन्द्र, सूर्य और चक्र आदि के चिन्हों वाली तथा समान स्तम्भ और दरवाजों वाली होती है ।। १२ ॥
एक पल्योपम की स्थिति वाले और महानिधियों के समान नाम वाले त्रायस्त्रिंश देव उन महानिधियों के आश्रय यानी अधिष्ठाता हैं। ये बेची नहीं जा सकती हैं । उन महानिधियों पर देवों का आधिपत्य है ।। १३॥
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बहुत धन और रत्नों का सञ्चय करने वाली ये नौ महानिधियाँ हैं जो कि सब चक्रवर्तियों के वश में होती है अर्थात् प्रत्येक चक्रवर्ती के पास ये नौ महानिधियाँ होती है । १४ ॥ विगय, द्वार, पुण्य, पाप स्थान और पाप श्रुत
ra विगईओ पण्णत्ताओ तंजहा - खीरं, दहि, णवणीयं, सप्पिं, तेलं, गुलो, महुं, मज्जं, मंसं । णव सोयपरिस्सवा बोंदी पण्णत्ता तंजहा- दो सोया, दो णेत्ता, दो घाणा, मुंह, पोसे, पाऊ । णव विहे पुण्णे पण्णत्ते तंजहा - अण्णपुण्णे, पाणपुण्णे, वत्थपुण्णे, लेणपुण्णे, सयणपुण्णे, मणपुण्णे, वयपुण्णे, कायपुण्णे, णमोक्कारपुण्णे । णव पावस्स आययणा पण्णत्ता तंजहा पाणाइवाए, मुसावाए, अदिण्णादाणे, मेहुणे, परिग्गहे, कोहे, माणे, माया, लोभे । णव विहे पावसुयपसंगे पण्णत्ते तंजहा - उप्पाए, णिमित्ते, मंते, आइक्खिए, तिगिच्छए, कला, आवरणे, अण्णाणे, मिच्छायावयणे इ य ॥ १०५ ॥
कठिन शब्दार्थ - णवणीयं- नवनीत (मक्खन) सप्पिं सर्पि (घी) गुलो - गुड, महुं मधु-शहद, णव सोयपरिस्सवा नव स्रोत परिस्राव - नौ द्वारों से मल झरता है, पोसे - उपस्थ-पेशाब करने की जगह, पाऊ - पायु (गुदाद्वार) मलद्वार णमोक्कार पुण्णे नमस्कार पुण्य, आययणा - स्थान, पावसुयपसंगे- पापश्रुत प्रसंग, उप्पाए उत्पात, णिमित्ते निमित्त, मंते मन्त्र, आइक्खिए - मातङ्गविद्या, तिगिच्छिएं- चैकित्सिक (आयुर्वेद), आवरणे आवरण, अण्णाणे - अज्ञान, मिच्छापावयणे - मिथ्या प्रवचन ।
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भावार्थ - विकृति (विगय) - शरीर पुष्टि के द्वारा इन्द्रियों को उत्तेजित्त करने वाले अथवा मन में विकार उत्पन्न करने वाले पदार्थों को विकृति (विगय) कहते हैं । वे नौ हैं यथा - १. क्षीर यानी दूध बकरी, भेड़, गाय, भैंस और ऊंटनी के भेद से यह पांच प्रकार का है। २. दही यह चार प्रकार का
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