Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
३. वस्त्र पुण्य - कपड़े देने से होने वाला शुभ बन्ध। ४. लयन पुण्य- ठहरने के लिये स्थान देने से होने वाला शुभ कर्मों का बन्ध। . ५.शयन पुण्य- बिछाने के लिये पाटा बिस्तर और स्थान आदि देने से होने वाला पुण्य। . ६. मनः पुण्य- गुणियों को देख कर मन में प्रसन्न होने से शुभ कर्मों का बंधना। ७. वचन पुण्य - वाणी के द्वारा दूसरे की प्रशंसा करने से होने वाला शुभ बन्ध। ८. काय पुण्य - शरीर से दूसरे की सेवा भक्ति आदि करने से होने वाला शुभ बन्ध। ९. नमस्कार पुण्य - गुणी पुरुषों को नमस्कार करने से होने वाला पुण्य।
नैपुणिक वस्तु णव उणिया वत्यू पण्णत्ता तंजहा - संखाणे, णिमित्ते, काइए, पोराणे, पारिहथिए, परपंडिए, वाइए, भूइकम्मे, तिगिच्छए ।
नौ गण, नौ कोटि भिक्षा समणस्स भगवओ महावीरस्स णव गणा हुत्था तंजहा - गोदासगणे, उत्तर बलिस्सहगणे, उद्देहगणे, चारणगणे, उहवाइयगणे, विस्सवाइयगणे, कामड्डियगणे, माणवगणे, कोडियगणे । समणेणं भगवया महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णव कोडिपरिसुद्ध भिक्खे पण्णत्ते तंजहा - ण हणइ, ण हणावद, हणंतं णाणुजाणइ, ण पयइ, ण पयावेइ, पयंतं णाणुजाणइ, ण किणइ, ण किणावेइ, किणंतं णाणुजाणइ॥१०६॥
कठिन शब्दार्थ - णेऽणिया वत्यू - नैपुणिक वस्तु, संखाणे - संख्यान, काइए - कायिक, पारिहत्थिए - पारिहस्तिक, परपंडिए - पर पण्डित, वाइए - वादी, भूइकम्मे - भूतिकर्म, णव कोडिपरिसुद्धे - नौ कोटि परिशुद्ध, भिक्खे - भिक्षा, पयइ - पकाता है, किणइ - खरीदता है ।
भावार्थ - नैपुणिक वस्तु - निपुण अर्थात् सूक्ष्म ज्ञान को धारण करने वाले नैपुणिक कहलाते हैं। अनुप्रवाद नाम के नवमें पूर्व में नैपुणिक वस्तुओं के नौ अध्ययन कहे गये हैं यथा - १. संख्यान - गणित शास्त्र में निपुण व्यक्ति । २. निमित्त - चूड़ामणि आदि निमित्तों का जानकार । ३. कायिक - शरीर की नाड़ियों को जानने वाला अर्थात् प्राणतत्त्व का विद्वान् । ४. पुराण - वृद्ध पुरुष, जिसने दुनिया को देख कर तथा स्वयं अनुभव करके बहुत ज्ञान प्राप्त किया है, अथवा पुराण नाम के शास्त्र को जानने वाला । ५. पारिहस्तिक - जो व्यक्ति स्वभाव से चतुर हो, अपने सब प्रयोजन समय पर पूरे कर लेता हो । ६. परपण्डित - उत्कृष्ट पण्डित अर्थात् बहुत शास्त्रों को जानने वाला, अथवा जिसका मित्र आदि कोई पण्डित हो और उसके पास बैठने उठने से बहुत कुछ सीख लिया हो और अनुभव कर लिया हो।
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