Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
स्थान ९
00000000000
अभिजित् श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषक् पूर्व भाद्रपदा, उत्तरभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, भरणी तक नौ नक्षत्र चन्द्रमा के उत्तर में योग करते हैं । इस रत्नप्रभा पृथ्वी के समतल भूमिभाग से नौ सौ योजन की ऊंचाई में बीच में ऊपर का तारा यानी शनैश्चर घूमता हैं । इस जम्बूद्वीप में नौ योजन के विस्तार वाले मत्स्यों ने प्रवेश किया है, प्रवेश करते हैं और प्रवेश करेंगे । इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में नौ बलदेव वासुदेवों के नौ पिता हुए थे यथा प्रजापति, ब्रह्म, रौद्र, सोम, शिव, महासिंह, अग्निसिंह, दशरथ और वसुदेव । इस सूत्र से लेकर जैसा समवायांग में उनके पूर्वभव के नाम, धर्माचार्यों के नाम, नियाणा आदि सारा अधिकार यहां कह देना चाहिए यावत् एक वक्त गर्भावास में आकर आगामी काल में सिद्ध होवेंगें । इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी में नौ बलदेव वासुदेवों के नौ पिता होवेंगे । इस प्रकार जैसा समवायांग सूत्र में कथन किया है वैसा महाभीमसेन सुग्रीव प्रतिवासुदेव तक का सारा अधिकार यहां कह देना चाहिये ।
I
कीर्ति पुरुष यानी श्लाघ्यपुरुष वासुदेवों के ये प्रतिवासुदेव शत्रु होते हैं । ये सब चक्र से युद्ध करने वाले होते हैं और ये प्रतिवासुदेव अपने ही चक्र से मारे जाते हैं।
विवेचन - दर्शनावरणीय कर्म नौ प्रकार का कहा गया है
१. चक्षुदर्शनावरणीय - चक्षु अर्थात् आंख से पदार्थों का जो सामान्य ज्ञान होता है उसे . चक्षुदर्शन कहते हैं। उसका आवरण करने वाला कर्म चक्षु दर्शनावरणीय कर्म कहलाता है।
२५५
२. अचक्षुदर्शनावरणीय - श्रोत्र, प्राण, रसना, स्पर्शन और मन के संबंध से शब्द, गन्ध, रस और स्पर्श का जो सामान्य ज्ञान होता है उसे अचक्षु दर्शन कहते हैं। उसका आवरण करने वाला कर्म अचक्षु दर्शनावरणीय कर्म कहलाता है।
३. अवधिदर्शनावरणीय - इन्द्रियों की सहायता के बिना रूपी द्रव्य का जो सामान्य बोध होता है उसे अवधि दर्शन कहते हैं। उसका आवरण करने वाला कर्म अवधि दर्शनावरणीय कर्म कहलाता है। संसार के सम्पूर्ण पदार्थों का जो सामान्य अवबोध होता है उसे केवल दर्शन कहते हैं । उसका आवरण करने वाला कर्म केवल दर्शनावरणीय कर्म कहलाता है।
४. केवल दर्शनावरणीय
५. निद्रा - सोया हुआ आदमी जरा सी खटखटाहट से या आवाज से जाग जाता है उस नींद को 'निद्रा' कहते हैं। जिस कर्म से ऐसी नींद आवे उस कर्म को 'निद्रा' दर्शनावरणीय कर्म कहते हैं।
. ६. निद्रा निद्रा - जोर से आवाज देने पर या देह हिलाने से जो आदमी बड़ी मुश्किल से जागता है उसकी नींद को 'निद्रा निद्रा' कहते हैं। जिस कर्म के उदय से ऐसी नींद आवे उस कर्म का नाम " निद्रा निद्रा" दर्शनावरणीय कर्म कहते हैं।
Jain Education International
७. प्रचला खड़े खड़े या बैठे बैठे जिसको नींद आती है उसकी नींद को 'प्रचला' कहते हैं, जिस कर्म के उदय से ऐसी नींद आवे उस कर्म का नाम 'प्रचला' दर्शनावरणीय कर्म है।
·
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org