Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
- कठिन शब्दार्थ - रोगुप्पत्ती- रोग की उत्पत्ति, ओगाहणा - अवगाहना, अच्चासणाए - अति
आसनता (अति अशनता), अहियासणाए - अहितासनता(अहित अशनता), अइनिहाए - अति निद्रा से, अइजागरिएण - अति जागरिता से, उच्चारणिरोहेणं - उच्चार (मल) निरोध-टट्टी की बाधा रोकने से, पासवणणिरोहेणं - प्रस्रवण निरोध से, अद्धाणगमणेणं - अद्धा गमन-मार्ग में अधिक चलने से, भोयणपडिकूलयाए - भोजन प्रतिकूलता से, इंदियत्यविकोवणयाए - इन्द्रियार्थ विकोपनता-इन्द्रिय विषयों का विपाक-काम विकार से।
भावार्थ - चौथे तीर्थङ्कर श्री अभिनन्दन स्वामी के मोक्ष जाने के बाद नव लाख कोटिसागरोपम बीत जाने पर पांचवें तीर्थकर श्री सुमति नाथ भगवान् उत्पन्न हुए थे।
सद्भाव पदार्थ यानी वास्तविक मुख्य पदार्थ नौ कहे गये हैं । यथा - १. जीव - जिसे सुखदुःख का ज्ञान होता है तथा जिसका उपयोग लक्षण है, २. अजीव - जड़ पदार्थ जो सुख दुःख के ज्ञान से तथा उपयोग से रहित हैं ३. पुण्य - शुभ कर्म, ४. पाप - अशुभ कर्म, ५. आस्रव - शुभ और अशुभ कर्मों के आने का कारण, ६. संवर - गुप्ति आदि से कर्मों को रोकना, ७. निर्जरा - फलभोग के द्वारा या तपस्या के द्वारा कर्मों को खपाना, ८. बन्ध-आस्रव के द्वारा आये हुए कर्मों का आत्मा के साथ सम्बन्ध होना । ९. मोक्ष - समस्त कर्मों का नाश हो जाने पर आत्मा का अपने स्वरूप में लीन हो जाना। संसारी जीव नौ प्रकार के कहे गये हैं । यथा - पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेउकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय । पृथ्वीकायिक जीवों में नौ की गति और नौ की आगति कही गई है । यथा - पृथ्वी काय में उत्पन्न होने वाला पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वी काय में से यावत् पञ्चेन्द्रियों में से आकर उत्पन्न होता है । जब कोई पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकाय को छोड़ता है तो वह पृथ्वीकाय को छोड़ कर पृथ्वीकाय में यावत् पञ्चेन्द्रिय जीवों में जाकर उत्पन्न होता है । इसी तरह अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीवों में नौ की गति और नौ की आगति कह देनी चाहिए । सब जीव नौ प्रकार के कहे गये हैं । यथा - एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय - द्वीन्द्रिय, तेइन्द्रिय-त्रीन्द्रिय, चौइन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय, नैरयिक, तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय, मनुष्य, देव और सिद्ध भगवान् अथवा दूसरी तरह से सर्व जीव नौ प्रकार के कहे गये हैं । यथा - प्रथम समय नैरयिक, अप्रथम समय नैरयिक यावत् अप्रथम समय देव और सिद्ध भगवान् । सब जीवों की अवगाहना नौ प्रकार की कही गई है । यथा - पृथ्वीकायिक अवगाहना, अप्कायिक अवगाहना यावत् वनस्पतिकायिक अवगाहना, बेइन्द्रिय अवगाहना, तेइन्द्रिय अवगाहना, चतुरिन्द्रिय अवगाहना, पञ्चेन्द्रिय अवगाहना । जीवों ने नौ स्थानों में संसार परिभ्रमण किया है, परिभ्रमण करते हैं और परिभ्रमण करेंगे । यथा - पृथ्वीकाय रूप से यावत् पञ्चेन्द्रिय रूप से ।
नौ कारणों से रोग की उत्पत्ति होती है । यथा - १. अति आसनता - अधिक बैठे रहने से अर्श
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