Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान८
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के ऊंचे कहे गये हैं । बाईसवें तीर्थकर भगवान् अरिष्टनेमि के देव, मनुष्य और असुरों की सभा में वाद के विषय में पराजित न होने वाले उत्कृष्ट आठ सौ वादी थे।
केवलिसमुद्घात - अन्तर्मुहूर्त में मोक्ष प्राप्त करने वाला कोई केवलज्ञानी कर्मों को सम करने के लिए अर्थात् वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मों की स्थिति को आयुकर्म की स्थिति के बराबर करने के लिए समुद्घात करता है । केवलिसमुद्घात में आठ समय लगते हैं । यथा - प्रथम समय में केवली आत्मप्रदेशों के दण्ड की रचना करता है । वह मोटाई में स्वशरीर प्रमाण और लम्बाई में ऊपर और नीचे से लोकान्त पर्यन्त विस्तृत होता है । दूसरे समय में उसी दण्ड को पूर्व और पश्चिम तथा उत्तर
और दक्षिण में फैलाता है । फिर उस दण्ड का लोकपर्यन्त फैला हुआ कपाट बनता है । तीसरे समय में . दक्षिण और उत्तर अथवा पूर्व और पश्चिम दिशा में लोकान्त पर्यन्त आत्मप्रदेशों को फैला कर उसी कपाट को मथानी रूप बना देता है । ऐसा करने से लोक का अधिकांश भाग आत्मप्रदेशों से व्याप्त हो जाता है, किन्तु मथानी की तरह अन्तराल प्रदेश खाली रहते हैं । चौथे समय में मथानी के अन्तरालों को पूर्ण करता हुआ समस्त लोकाकाश को आत्मप्रदेशों से व्याप्त कर देता है क्योंकि लोकाकाश और एक जीव के प्रदेश बराबर है । पांचवें समय में अन्तरालों का साहरण करता है अर्थात् वापिस खींचता है । छठे समय में मथानी का साहरण करता है । सातवें समय में कपाट का साहरण करता है और आठवें समय में दण्ड का साहरण कर लेता है । उस समय सब आत्मप्रदेश फिर शरीरस्थ हो जाते हैं । .. विवेचन - जिन केवलियों के वेदनीय आदि कर्म अत्यधिक हो और आयुष्य कर्म अल्प हो वे अन्तर्मुहूर्त में मोक्ष प्राप्त करने के लिये शेष कर्मों को सम करने के लिये केवली समुद्घात करते हैं। केवली समुद्घात में आठ समय लगते हैं। इन आठ समयों में से पहले और आठवें इन दो समयों में औदारिक.काय योंग का प्रयोग होता है। दूसरे, छठे और सातवें इन तीन समयों में औदारिक मिश्र काय योग का प्रयोग होता हैं। तीसरे, चौथे और पांचवें इन तीन समयों में कार्मण काय योग का प्रयोग होता है। इसका विशेष वर्णन औपपातिक सूत्र एवं प्रज्ञापना सूत्र के समुद्घात पद से जानना चाहिये।
. अनुत्तरौपपातिक सम्पदा समणस्स भगवओ महावीरस्स अट्ठ सया अणुत्तरोववाइयाणं गइकल्लाणाणं जाव आगमेसिभहाणं उक्कोसिया अणुत्तरोववाइय संपया होत्था ।
- वाणव्यंतर देव और चैत्यवृक्ष - अट्ठविहा वाणमंतरा देवा पण्णत्ता तंजहा - पिसाया, भूया, जक्खा, रक्खसा, किण्णरा, किंपुरिसा, महोरगा, गंधव्वा । एएसिणं अट्ठण्हं वाणमंतरदेवाणं अट्ठ चेइयरुक्खा पण्णत्ता तंजहा -
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