Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान८
२४१ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 जीत व्यवहार है कि हम तीर्थंकर भगवान् का अशुचि कर्म निवारण करके उनका जन्म महोत्सव मनावें। तब वे अपने अपने यान-विमानों से तीर्थंकर भगवान् के जन्म स्थान पर पहुंचती हैं और अशुचि निवारण करके जन्म महोत्सव मनाती हैं। उनका स्थान इस प्रकार है -
मेरु अह उडलोया, चउदिसिरुयगाउ अट्ठपत्तेयं।
चउविदिसि मज्झरुयगा इंति छप्पन दिसिकुमारी॥.. (सत्तरिसयगणवृत्ति ग्रन्थ) - अर्थ - इस जम्बू द्वीप से तेरहवें द्वीप का नाम रुचक द्वीप है। उस द्वीप में रुचक पर्वत है। वह वलयाकार है, वह ८४,००० योजन का ऊंचा है। मूल में १०२२ बीच में ७०२३ और ऊपर ४०२४ योजन का चौड़ा है। ऊपर की चौड़ाई में चौथे हजार में चारों दिशाओं में सिद्धायतन कूट के दोनों तरफ चार-चार कूट हैं। उन कूटों पर एक-एक दिशाकुमारी देवी है। चारों दिशाओं में आठ-आठ कूट हैं। उन एक-एक कूट पर एक-एक दिशाकुमारी देवी है। इस प्रकार बत्तीस दिशाकुमारी देवियाँ हैं। चार विदिशा में चार दिशाकुमारी देवियाँ हैं । रुचक पर्वत के शिखर पर ४०२४ योजन की चौड़ाई में से बीच की दो हजार की चौड़ाई में चार दिशाकुमारी देवियां हैं, इनको मध्य रुचक वासिनी देवियाँ कहते हैं। समतल भूमि भाग से ९०० सौ योजन नीचे चार गजदन्ता पर्वतों के नीचे आठ कूट हैं। उन पर रहने वाली आठ दिशाकुमारियों को अधोलोक वासिनी देवियाँ कहते हैं। समतल भूमि भाग से ५०० योजन के ऊपर मेरु पर्वत के नन्दन वन में ५०० योजन के ऊंचे आठ कूट हैं, ऊन आठों कूटों पर एक-एक देवी रहती हैं। इनको ऊर्ध्वलोक वासिनी दिशाकुमारी देवियाँ कहते हैं। ये ५६ दिशाकुमारी देवियाँ भवनपति जाति की हैं। इस प्रकार इन-५६ दिशाकुमारी देवियों का निवास स्थान है।
. भिक्षु प्रतिमा, संसारी जीव, सर्व जीव, संयम .. अट्ठमियाणं भिक्खुपडिमाणं चउसट्ठिएहिं राइंदिएहिं दोहिं य अट्ठासीएहिं भिक्खासएहिं अहासुत्ता जाव अणुपालिया वि भवइ । अट्ठविहा संसार समावण्णगा जीवा पण्णत्ता तंजहा - पढमसमय रइया, अपढमसमय रइया, एवं जाव अपढमसमय देवा । अट्ठविहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा - णेरइया, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्खजोणिणीओ, मणुस्सा, मणुस्सीओ, देवा, देवीओ, सिद्धा । अहवा अट्ठ विहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा - आभिणिबोहियणाणी, जाव केवलणाणी, मइअण्णाणी सुयअण्णाणी, विभंगणाणी । अट्ठ विहे संजमे पण्णत्ते तंजहा - पढमसमय सुहुम संपरायसरागसंजमे, अपढमसमय सहमसंपराय सरागसंजमे, पढमसमय बादर संजमे, अपढमसमय बादर संजमे, पढमसमय उवसंत कसायवीयरागसंजमे, अपढमसमय
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