Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
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उवसंतकसाय वीयरागसंजमे, पढमसमय खीणकसायवीयरागसंजमे अपढमसमय खीण कसाय वीयराग संजमे।
आठ पृथ्वियाँ,ईषत्याग्भारा के नाम अट्ठ पुढवीओ पण्णत्ताओ तंजहा - रयणप्पभा जाव अहंसत्तमा ईसिपब्भारा । ईसिपब्भाराए णं पुढवीए बहुमझदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ते । ईसिपब्भाराए णं पुढवीए अट्ठ णामधिजा पण्णत्ता तंजहा - इंसि इवा, इंसिपब्भारा इवा, तणू इ वा, तणुतणू इवा, सिद्धी इवा, सिद्धालए इवा, मुत्ती इ वा, मुत्तालएइवा॥९७॥
. कठिन शब्दार्थ - अट्ठमियाणं - अष्ट अष्टमिका, अहासुत्ता - सूत्र के अनुसार, इंसि - ईषत्, इंसिपब्भारा - ईषत्प्राग्भारा, तणू - तन्वी (पतली), तणुतणू - तनुतन्वी, सिद्धालए - सिद्धालय, मुत्ती- मुक्ति, मुत्तालए - मुक्तालय ।
. भावार्थ - अष्ट अष्टमिका भिक्षुपडिमा चौसठ दिनों में पूर्ण होती है और २८८ भिक्षाएं होती हैं। इस पडिमा का सूत्र के अनुसार पालन करना चाहिए । आठ प्रकार के संसारी जीव कहे गये हैं. । यथा - प्रथम समय के नैरयिक, अप्रथम समय के नैरयिक यावत् अप्रथम समय के देव । आठ प्रकार के सब जीव कहे गये हैं । यथा - नैरयिक, तिर्यञ्च, तिर्यञ्चणी, मनुष्य, मनुष्यणी, देव, देवी और सिद्ध भगवान् अथवा दूसरे प्रकार से सर्व जीव आठ प्रकार के कहे गये हैं । यथा - आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी, केवलज्ञानी, मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी, विभङ्ग ज्ञानी । आठ प्रकार का संयम कहा गया है । यथा - प्रथम समय सूक्ष्म सम्परायसराग संयम, अप्रथम समय सूक्ष्म सम्पराय सराग संयम, प्रथमसमय बादर संयम, अप्रथम समय बादर संयम, प्रथम समय उपशान्त कषाय वीतराग संयम, अप्रथम समय उपशान्तकषाय वीतराग संयम, प्रथमसमय क्षीण कवाय वीतराग संयम, अप्रथमसमय क्षीण कषाय वीतराग संयम । आठ पृथ्वियाँ कही गई हैं । यथा - रत्नप्रभा से लेकर सातवीं नरक तमतमा तक सात पृथ्वियां और आठवी ईषत् प्राग्भारा । ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के मध्य भाग का आठ योजन का क्षेत्र आठ योजन का लम्बा चौड़ा कहा गया है । ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के आठ नाम कहे गये हैं । यथा - ईषत् यानी रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों की अपेक्षा छोटी, ईषत्प्राग्भारा - रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों की अपेक्षा कम ऊंचाई वाली। तन्वी - पतली, तनुतन्वी - अधिक पतली यानी अन्तिम भाग में मक्खी के पंख से भी अधिक पतली । सिद्धि - वहां जाकर जीव सिद्ध होते हैं। सिद्धालय - सिद्ध का स्थान । मुक्ति-सकल कर्मों से मुक्त जीव वहाँ रहते हैं । मुक्तालय - मुक्त जीवों का स्थान । .
विवेचन - जो प्रतिमा आठ अष्टक रूप दिवसों (६४ दिनों) में पूरी होती है उसे अष्ट
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