Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान८
२३७ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 इसी तरह जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की पूर्व दिशा में सीता महानदी के दक्षिण में उत्कृष्ट आठ तीर्थङ्कर, आठ चक्रवर्ती, आठ बलदेव और आठ वासुदेव उत्पन्न हुए थे, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे । इसी प्रकार जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की पश्चिम दिशा में सीतोदा महानदी के दक्षिण में और उत्तर में आठ आठ तीर्थकर, आठ आठ चक्रवर्ती, आठ आठ बलदेव, आठ आठ वासुदेव उत्पन्न हुए थे, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे। ___ जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की पूर्व दिशा में सीता महानदी के उत्तर में आठ दीर्घ वैताढ्य, आठ तिमिस्र गुफाएं, आठ खण्डप्रपात गुफाएं, आठ कृतमालक देव, आठ नृत्यमालक देव आठ गङ्गा नदियाँ, आठ सिन्धु नदियाँ, आठ गङ्गा कूट, आठ सिन्धुकूट, आठ ऋषभकूट पर्वत और आठ ऋषभकूट देव कहे गये हैं । जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की पूर्व दिशा में सीता महानदी के दक्षिण में आठ दीर्घवैताढ्य पर्वत यावत् आठ ऋषभकूट देव कहे गये हैं । किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ पर रक्ता और रक्तवती नदियाँ तथा रक्त कूट और रक्तवतीकूट कहने चाहिएं । जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की पश्चिम दिशा में सीतोदा महानदी के दक्षिण में आठ दीर्घवैताढ्य पर्वत यावत् आठ नृत्यमालक देव, आठ गङ्गा नदियां, आठ सिन्धु नदियाँ, आठ गंगाकूट, आठ सिंधुकूट, आठ ऋषभकूट पर्वत और आठ ऋषभकूट देव कहे गये हैं । जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की पश्चिम दिशा में सीतोदा महानदी के उत्तर में आठ दीर्घ वैताढ्य पर्वत यावत् आठ नृत्यमालक देव, आठ रक्ता नदियाँ, आठ रक्तवती नदियाँ, आठ रक्त कूट, आठ रक्तवती कूट यावत् आठ ऋषभकूट देव कहे गये हैं ।
मेरुपर्वत की चूलिका मध्य भाग में आठ योजन चौड़ी कहीं गई है । धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्द्ध में धातकी वृक्ष आठ योजन ऊंचा.है । बीच में यानी शाखाओं के विस्तार की जगह आठ योजन चौड़ाहै और सर्वाग्र यानी उस वृक्ष की उद्वेध सहित सारी ऊंचाई आठ योजन से कुछ अधिक है । इस तरह धातकी वृक्ष से लगा कर मेरु पर्वत की चूलिका तक सारा वर्णन जम्बूद्वीप के समान कह देना चाहिए । इसी प्रकार धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिमार्द्ध में भी महाधातकीवृक्ष से लगा कर मेरुपर्वत की चूलिका तक सारा वर्णन जम्बूद्वीप के समान कह देना चाहिए । इसी प्रकार अर्द्धपुष्करवर द्वीप के पूर्वार्द्ध में पद्मवृक्ष से लगा कर मेरु पर्वत की चूलिका तक और इसी प्रकार अर्द्ध पुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्द्ध में महापद्म वृक्ष से लगा कर मेरु पर्वत की चूलिका तक सारा वर्णन जम्बूद्वीप.के समान कह देना चाहिए ।
· इस जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत पर भद्रशाल वन में पूर्वादि दिशाओं में आठ हस्तिकूट कहे गये हैं । यथा - पद्मोत्तर, नीलवान्, सुहस्ती, अञ्जनगिरि, कुमुद, पलाश, वतंस और रोचनगिरि । इस जम्बूद्वीप की जगती यानी कोट आठ योजन ऊंचा है और बीच में आठ योजन चौड़ा कहा गया है ।
पर्वतों के कूट और दिशाकुमारियाँ - जंबूहीवे दीवे मंदरपव्वयस्स दाहिणेणं महाहिमवंते वासहरपव्वए अट्ठ कूडा पण्णत्ता तंजहा -
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