Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
आठ आठ महाग्रह कहे गये हैं यथा - चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बुध, बृहस्पति, अंगार यानी मंगल, शनिश्चर और केतु । ... तृण वनस्पति काय आठ प्रकार की कही गई है यथा - मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प । चतुरिन्द्रिय जीवों का आरम्भ न करने वाले पुरुष को आठ प्रकार का संयम होता है यथा - वह चतुरिन्द्रिय जीव को चक्षु सम्बन्धी सुख से वञ्चित नहीं करता और उसको चक्षु सम्बन्धी दु:ख प्राप्त नहीं करवाता है। वह चक्षु सम्बन्धी दुःख को प्राप्त नहीं होता है। इसी प्रकार घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी सुख से वञ्चित नहीं करता है तथा इन इन्द्रियाँ सम्बन्धी दुःख को प्राप्त नहीं करवाता है। चतुरिन्द्रिय जीवों का आरम्भ करने वाले पुरुष को आठ प्रकार का असंयम होता है। यथा - वह चक्षु सम्बन्धी सुख से वञ्चित करता है और चक्षु सम्बन्धी दुःख को प्राप्त करवाता है। इसी प्रकार घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी सुख से वञ्चित करता है तथा इन इन्द्रियाँ सम्बन्धी दुःख को प्राप्त करवाता है । सूक्ष्म जीव आठ कहे गये हैं। यथा - १. प्राण सूक्ष्म - कुन्थुआ आदि जीव जो चलते हुए ही दिखाई देते हैं, स्थिर नजर नहीं आते हैं। २. पनक सूक्ष्म - वर्षाकाल में भूमि और काठ आदि पर होने वाली पांच रंग की लीलन फूलन। ३. बीज सूक्ष्म-शाली आदि बीज का मुखमूल जिससे अङ्खर उत्पन्न होता है। ४. हरित सूक्ष्म - नवीन उत्पन हुई हरितकाय जो पृथ्वी के समान वर्ण वाली होती है। ५. पुष्प सूक्ष्म - बड़ या उदुम्बर आदि के फूल जो सूक्ष्म तथा उसी रंग के होने से जल्दी नजर नहीं आते हैं। ६. अण्ड सूक्ष्म-मक्खी, कीडी, छिपकली, गिरगट आदि के सूक्ष्म अण्डे जो दिखाई नहीं देते हैं। ७. लयन सूक्ष्म या उतिंग सूक्ष्म-कीड़ी नगरा अर्थात् कीड़ियों का बिल, उस बिल में दिखाई नहीं देने वाली चींटियां और बहुत से दूसरे सूक्ष्म जीव होते हैं। ८. स्नेह सूक्ष्म अवश्याय - (बर्फ) हिम महिका आदि रूप स्नेह होता है, यह स्नेह.ही सूक्ष्म जीव होता है। चारों दिशाओं में राज्य का विस्तार करने वाले भरत चक्रवर्ती के बाद आठ पुरुष अनुक्रम से सिद्ध यावत् सब दुःखों का अन्त करने वाले हुए हैं। यथा-आदित्ययश, महायश, अतिबल, महाबल, तेजवीर्य, कीर्तवीर्य, दण्डवीर्य, जलवीर्य। पुरुषादानीय यानी पुरुषों में माननीय तेईसवें तीर्थकर भगवान् पार्श्वनाथ के आठ गण और आठ गणधर थे। यथा - शुभ, आर्यघोष, वशिष्ठ, ब्रह्मचारी, सोम, श्रीधर, वीर्य और भद्रयश।
विवेचन- तृण वनस्पतिकाय - बादर वनस्पतिकाय को तृण वनस्पतिकाय कहते हैं। इसके आठ भेद हैं - १. मूल अर्थात् जड़ २. कन्द - स्कन्ध के नीचे का भाग ३. स्कन्ध - धड़, जहाँ से शाखाएं निकलती है ४. त्वक् - ऊपर की छाल ५. शाखाएं ६. प्रवाल अर्थात् अंकुर ७. पत्ते और ८. फूल। .
सूक्ष्म - बहुत मिले हुए होने के कारण या छोटे परिमाण वाले होने के कारण जो जीव दृष्टि में नहीं आते या कठिनता से आते हैं, वे सूक्ष्म कहे जाते हैं। सूक्ष्म आठ प्रकार के जैसा कि गाथा में हैं -
सिणेहं पुष्फसहुमं च पाणुत्तिगं तहेव य। पाणगं बीयहरियं च अंडसुहुमं च अट्ठमं॥
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