Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
णिद्देसे पढमा होइ, बिईया उवएसणे । तईया करणम्मि कया, चउत्थी संपयावणे ॥ १॥ पंचमी य अवायाणे, छट्ठी सस्सामि वायणे । सत्तमी सण्णिहाणत्थे, अट्ठमी आमंतणी भवे ॥२॥ तत्थ पढमा विभत्ती, णिहेसे सो इमो अहं वत्ति । बिईया पुण उवएसे, भण कुण व तिमं व तं वत्ति ॥ ३॥ तइया करणम्मि कया, णीयं य कयं य तेण वं मए व । हंदि णमो साहाए, हवइ चउत्थी पयाणम्मि ॥४॥ अवणे गिण्हसु तत्तो, इत्तोत्ति व पंचमी अवायाणो । छट्ठी तस्स इसस्स व, गयस्स वा सामि संबंधे ॥५॥ हवइ पुण सत्तमी, तम्मिमम्मि आहारकाल भावे य । आमंतणी भवे अट्ठमी, उ जह हे जुवाण त्ति ॥६॥
छद्मस्थ और केवली का विषय अट्ठ ठाणाई छउमत्थे णं सव्वभावेणं ण जाणइ ण पासइ तंजहा - धम्मत्थिकायं जाव गंधं वायं । एयाणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली जाणइ पासइ जाव गंधं वायं ।
आयुर्वेद के भेद अट्ठविहे आउवेए पण्णत्ते तंजहा - कुमारभिच्चे, कायतिगिच्छा, सालाई, सल्लहत्ता, जंगोली, भूयविज्जा, खारतंते, रसायणे॥८९॥
कठिन शब्दार्थ - अकिरियावाई - अक्रियावादी, समुच्छेयवाई - समुच्छेद वादी, सुविणे - स्वप्न, अंतलिक्खे - आन्तरिक्ष, वयण विभत्ति - वचन विभक्ति, आउवेए - आयुर्वेद।
भावार्थ - अक्रियावादी यानी अनेकान्तात्मक यथार्थ स्वरूप को न मानने वाले नास्तिक के आठ भेद कहे गये हैं यथा-एकवादी - अर्थात् संसार को एक ही वस्तुरूप मानने वाले अद्वैतवादी। अनेकवादी अर्थात् संसार के समस्त पदार्थों को सर्वथा भिन्न भिन्न मानने वाले बौद्ध आदि। मितवादी अर्थात् जीव अनन्तानन्त है फिर भी उन्हें जो परिमित बताते हैं अथवा जो जीव को अंगुष्ठपरिमाण, श्यामाक तन्दुल परिमाण. या अणुपरिमाण मानते हैं वे मितवादी हैं। निर्मितवादी अर्थात् संसार को ईश्वर, ब्रह्म या पुरुष आदि के द्वारा निर्मित यानी बनाया हुआ मानने वाले। सातवादी - जो कहते हैं कि संसार
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