Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ६
१३७
क्षुद्र प्राणी छव्विहा खुड्डा पाणा पण्णत्ता तंजहा - बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया, सम्मुच्छिमपंचिंदिय तिरिक्खजोणिया, तेउकाइया, वाउकाइया।
गोचर चर्या छबिहा गोयरचरिया पण्णत्ता तंजहा - पेडा, अद्धपेडा, गोमुत्तिया, पतंगवीहिया, संबुक्कवड्डा, गंतुं पच्चागया।
महानरकावास
जंबूहीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए छ अवक्कंता महाणिरया पण्णत्ता तंजहा - लोले, लोलुए, उदड्डे, णिदडे, जरए, पज्जरए। चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुडवीए छ अवक्कंता महाणिरया पण्णत्ता तंजहा - आरे, वारे, मारे, रोरे, रोरुए, खाडखडे॥५२॥ - कठिन शब्दार्थ - खडा - क्षुद्र, गोयरचरिया - गोचरचर्या-गोचरी, पेडा - पेटा, अद्धपेडा - अर्द्ध पेटा, गोमुत्तिया - गोमूत्रिका, पतंगवीहिया - पतंगवीथिका, संबुक्क-वट्ठा - शम्बूकावर्ता, गंतुंपब्बागया - गत प्रत्यागता, अवक्कता - अपक्रान्त, महाणिरया - महानरक।
भावार्थ - क्षुद्र प्राणी यानी अपम प्राणी छह प्रकार के कहे गये हैं यथा - बेइन्द्रिय - स्पर्शन और रसना दो इन्द्रियों वाले जीव । तेइन्द्रिय - स्पर्शन, रसना और घ्राण तीन इन्द्रियों वाले जीव । चौइन्द्रियस्पर्शन, रसमा, घ्राण और चक्षु, चार इन्द्रियों वाले जीव । सम्मूर्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च - पांचों इन्द्रियों वाले बिना मन के असंज्ञी तिर्यञ्च । तेउकायिक - अग्नि के जीव, वायुकायिक - हवा के जीव । बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, अग्नि और वायु ये तो अनन्तर भव यानी इस काय से निकल कर अगले भव में भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते हैं तथा सम्मूर्छिम तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय में देव आकर उत्पन्न नहीं होते हैं । इसलिए इन छहों को क्षुद्र प्राणी कहते हैं। ____ गोचरी - जैसे गाय सभी प्रकार के तृणों को सामान्य रूप से चरती है उसी प्रकार साधु उत्तम, मध्यम तथा नीचे कुलों में राग द्वेष रहित होकर विचरते हैं । शरीर को धर्मसाधन का अंग समझ कर उसका पालन करने के लिए आहार आदि लेते हैं । गाय की तरह उत्तम मध्यम आदि का भेद न होने से मुनियों की भिक्षावृत्ति भी गोचरी कहलाती है । अभिग्रह विशेष से इसके छह भेद हैं यथा - १. पेटा - जिस गोचरी में साधु ग्राम आदि को पेटी (सन्दूक) की तरह चार कोणों में बांट कर बीच के घरों को छोड़ता हुआ चारों दिशाओं में समश्रेणी से गोचरी करता है वह पेटा गोचरी कहलाती है। २. अर्द्धपेटाउपरोक्त प्रकार से क्षेत्र को बांट कर केवल दो दिशाओं के घरों से भिक्षा लेना अर्द्ध पेटा गोचरी है।
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