Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
सात बातों से यह जाना जा सकता है कि अमुक व्यक्ति छद्मस्थ है अर्थात् केवली नहीं है। छद्मस्थ जानने के सात स्थान मूल पाठ में बताये गये हैं। सभी छद्मस्थ सरीखे नहीं होते हैं । कोई कोई छद्मस्थ इस प्रकार के दोष सेवन कर लेते हैं। यह पाठ समुच्चय छद्मस्थ के लिए है । इन बातों को लेकर और इस पाठ के आधार से भगवान् महावीर स्वामी में दोष कायम करना और भगवान् को 'चूका' (भूल करने वाला अथवा दोष सेवन करने वाला) कहना अज्ञानता है । किंतु इससे विपरीत सात बोलों से केवली पहचाने जा सकते हैं। केवली हिंसादि से सर्वथा रहित होते हैं।
गोत्र सात सत्त मूल गोत्ता पण्णत्ता तंजहा - कासवा, गोयमा, वच्छा, कोच्छा, कोसिया, मंडवा, वासिट्ठा ।जे कासवा ते सत्तविहा पण्णत्ता तंजहा - ते कासवा, ते संडिल्ला, ते गोल्ला, ते वाला, ते मुंजइणो, ते पव्वपेच्छइणो, ते वरिसकण्हा । जे गोयमा ते सत्तविहा पण्णत्ता तंजहा - ते गोयमा, ते गग्गा, ते भारहा, ते अंगिरसा, ते सक्कराभा, ते भक्कराभा, ते उदगत्ताभा । जे वच्चा ते सत्तविहा पण्णत्ता तंजहा - ते वच्छा ते अग्गेया, ते मित्तिया, ते सामिलिणो, ते सेलपया, ते अद्विसेणा, ते वायकण्हा । जे कोच्छा ते सत्तविहा पण्णत्ता तंजहा - ते कोच्छा, ते मोग्गलायणा, ते पिंगलायणा, ते कोडीणा, ते मंडलीणो, ते हारिया, ते सोमया । जे कोसिया ते सत्तविहा पण्णत्ता तंजहा - ते कोसिया, ते कच्चायणा, ते सालंकायणा, ते गोलिकायणा, ते पक्खिकायणा, ते अग्गिच्चा, ते लोहिया ।जे मंडवा ते सत्तविहा पण्णत्ता तंजहा - ते मंडवा, ते अरिट्ठा, ते समुया, ते तेला, ते एलावच्छा, ते कंडिल्ला, ते खारायणा । जे वासिहा ते सत्तविहा पण्णत्ता तंजहा - ते वासिट्ठा, ते उंजायणा, ते जारेकण्हा, ते वग्यावच्चा, ते कोडिण्णा, ते सण्णी, ते पारासरा॥६५॥ ____कठिन शब्दार्थ - मूल गोत्ता - मूल गोत्र, कासवा - काश्यप, गोयमा - गौतम, वच्छा - वत्स, कोच्छा - कौत्स कोसिया - कौशिक, मंडवा - मण्डप, वासिट्ठा - वाशिष्ठ, पव्वपेच्छइण्णो - पर्व प्रेक्षक । _____ भावार्थ - सात मूल गोत्र कहे गये हैं यथा - काश्यप, गौतम, वत्स, कौत्स, कौशिक, मण्डप और वाशिष्ठ। काश्यप सात प्रकार के कहे गये हैं यथा - काश्यप, शाण्डिल्य, गोल, वाल, मुञ्ज, पर्वप्रेक्षक और वर्षकृष्ण । सात प्रकार के गौतम कहे गये हैं यथा - गौतम, गर्ग, भारत,, अंगीरस, शर्कराभ, भास्कराभ और उदगतभ। वत्स सात प्रकार के कहे गये हैं यथा - वत्स, आग्नेय, मैत्रिक,
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