Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 पण्णत्ता तंजहा - सेणावइरयणे, गाहाबइरयणे, वड्डइरयणे, पुरोहियरयणे, इत्थिरयणे, आसरयणे, हत्थिरयणे॥७१॥
कठिन शब्दार्थ - एगिदिय रयणा - एकेन्द्रिय रत्न, काकणि रयणे - काक्रणी रत्न, वडइरयणे- वर्द्धकी (बढई) रत्न, आसरयणे - अश्व रत्न, हत्थिरयणे - हस्ति रत्न ।
भावार्थ - प्रत्येक चक्रवर्ती के पास सात एकेन्द्रिय रत्न होते हैं यथा - चक्ररत्न, छत्ररत्न, चमररत्न, दण्डरत्न, असिरत्न, मणिरत्न और काकणीरत्न । प्रत्येक चक्रवर्ती के पास सात पञ्चेन्द्रिय - रत्न होते हैं अर्थात् सात पञ्चेन्द्रिय जीव ऐसे होते हैं जो अपनी अपनी जाति में सब से श्रेष्ठ होते हैं वे इस प्रकार हैं- सेनापति रत्न, गाथापति रत्न, वर्द्धकी अर्थात् बढई रत्न, पुरोहित रत्न, स्त्री रल, . अश्व रत्न और हस्ति रत्न ।
विवेचन - प्रत्येक चक्रवर्ती के पास सात एकेन्द्रिय रत्न और सात पंचेन्द्रिय रत्न होते हैं। अपनी अपनी जाति में सर्वश्रेष्ठ होने के कारण इन्हें रत्न कहा गया है। सभी एकेन्द्रिय रत्न पार्थिव अर्थात् पृथ्वी रूप होते हैं। इन चौदह रत्नों के एक-एक हजार देव रक्षक होते हैं। जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में इन १४ रत्नों की उपयोगिता का विशेष वर्णन मिलता है। जिज्ञासुओं को वहां से देखना चाहिये।
दुःषमा सुषमा लक्षण सत्तहिं ठाणेहिं ओगाढं दुस्समं जाणिज्जा तंजहा - अकाले वरिसइ, काले ण वरिसइ, असाहू पुजंति, साहू ण पुजंति, गुरुहिं जणो मिच्छं पडिवण्णो, मणोदुहया, वयदुहया । सत्तहिं ठाणेहिं ओगाढं सुसमं जाणिज्जा तंजहा - अकाले ण वरिसइ, काले वरिसइ, असाहू ण पुजंति, साहू पुजंति, गुरुहिं जणो सम्मं पडिवण्णो, मणोसुहया, वयसुहया॥७२॥
कठिन शब्दार्थ - दुस्सम - दुषमा, ओगाढं - अवगाढ-आया हुवा, अकाले - अकाल में, वरिसइ-वर्षा होती है, असाहू - असाधु, पुजंति - पूजे जाते हैं, मणोदुहया - मनोदुःखिता, वयदुहयावाग् दुःखिता, सुसम- सुषमा ।।
. भावार्थ - दुषमा - उत्सर्पिणी काल का दूसरा आरा तथा अवसर्पिणी काल का पांचवां आरा दुषमा काल कहलाता है । यह इक्कीस हजार वर्ष तक रहता है । सात बातों से यह जाना जा सकता है कि अब दुषमा आरा शुरू होने वाला है या सात बातों से दुषमा आरा का प्रभाव जाना जाता है । दुषमा आरा आने पर अकाल में वर्षा होती है । वर्षाकाल में जिस समय वर्षा की आवश्यकता होती है उस समय वर्षा नहीं होती है । असाधु पूजे जाते हैं । साधु और सज्जन पुरुषों का सन्मान नहीं होता है । माता पिता और गुरुजनों का विनय नहीं रहता है । लोगों का मन अप्रसन्न और दुर्भावना वाला हो जाता है । लोग कड़वे और द्वेष पैदा करने वाले वचन बोलते हैं।
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