Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१५२
श्री स्थानांग सूत्र
६. अनुभाव नाम निधत्तायु :- आयु द्रव्य का विपाक रूप परिणाम अथवा अनुभाव रूप नामकर्म अनुभाव नाम है । अनुभाव नाम कर्म के साथ निषेक को प्राप्त आयु अनुभाव नाम निधत्तायु है । नैरयिक जीवों के छह प्रकार का आयुबन्ध कहा गया है। यथा - जाति नाम निधत्त आयु यावत् अनुभाव नाम निधत्त आयु । इसी प्रकार वैमानिक देवों पर्यन्त सभी जीवों के छह प्रकार का आयुबन्ध है।
सभी नैरयिक जीव, असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक दस भवनपति, असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय, असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य, वाणव्यन्तर देव, ज्योतिषी देव और वैमानिक देव, ये सभी अपनी आयु छह महीने बाकी रहने पर परभव यानी अगले भव का आयुष्य बांधते हैं । छह प्रकार का भाव कहा गया है । यथा - १. औदयिक - यथायोग्य समय पर उदय में आये हुए आठ कर्मों का अपने अपने स्वरूप. से फल भोगना उदय है । उदय से होने वाला भाव.
औदयिक है। २. औपशमिक-उपशम से होने वाला भाव औपशमिक कहलाता है । प्रदेश और विपाक दोनों प्रकार से कर्मों का उदय रुक जाना उपशम है । इस प्रकार का उपशम सर्वोपशम कहलाता है और वह सर्वोपशम मोहनीय कर्म का ही होता है, शेष कर्मों का नहीं । ३. क्षायिक - जो कर्म के सर्वथा क्षय होने पर प्रकट होता है वह क्षायिक भाव कहलाता है । ४. क्षायोपशमिक - उदय में आये हुए कर्म का क्षय और अनुदीर्ण अंश का विपाक की अपेक्षा उपशम होना क्षयोपशम कहलाता है । ५. पारिणामिक-कर्मों के उदय, उपशम आदि की अपेक्षा बिना जो भाव जीव को स्वभाव से ही होता है. वह पारिणामिक भाव है । ६. सान्निपातिक-सन्निपात का अर्थ है संयोग । औदयिक आदि पांच भावों में से दो, तीन, चार या पांच के संयोग से होने वाला भाव सान्निपातिक भाव कहलाता है । द्विक संयोगी के दस भङ्ग, त्रिक संयोगी के दस, चतुस्संयोगी के पांच, और पञ्चसंयोगी का एक, इस प्रकार सान्निपातिक भाव के कुल मिला कर २६ छब्बीस भङ्ग होते हैं।
इन में से छह भङ्ग के जीव पाये जाते हैं। शेष बीस भङ्ग शून्य है। अर्थात् कही नहीं पाये जाते हैं
१. द्विक संयोगी भङ्गों में नवमा भङ्ग-क्षायिक पारिणामिक भाव सिद्धों में होता है। सिद्धों में ज्ञान दर्शन आदि क्षायिक तथा जीवत्व पारिणामिक भाव है।
२. त्रिक संयोगी भङ्गों में पांचवा भङ्ग-औदयिक क्षायिक पारिणामिक केवली में पाया जाता है। केवली में मनुष्य गति आदि औदयिक, ज्ञान दर्शन चारित्र आदि क्षायिक तथा जीवत्व पारिणामिक भाव हैं।
३. त्रिक संयोगी भङ्गों में छठा भङ्ग-औदयिक क्षायोपशमिक पारिणामिक चारों गति में होता है। चारों गतियों में गति आदि रूप औदयिक, इन्द्रियादि रूप क्षयोपशमिक और जीवत्व रूप पारिणामिक भाव है।
४. चतुस्संयोगी भङ्गों में तीसरा भङ्ग-औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशिमिक पारिणामिक चारों गतियों में पाया जाता है। नरक, तिर्यंच और देव गति में प्रथम सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय ही उपशम
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org