Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
प्रीणनीय, बिहणिजे - बृहनीय, दीवणिज्जे - दीपनीय, दप्पणिज्जे - दर्पनीय, विस परिणामे - विष परिणाम, डक्के - दष्ट, भुत्ते - भुक्त, णिव्वइए - निपतित, मंसाणुसारी- मांसानुसारी, सोणियाणुसारीशोणितानुसारी, अट्ठिमिंजाणुसारी - अस्थिमिञ्जानुसारी, पढे - प्रश्न, संसयपट्टे- संशय प्रश्न, बुग्गहेपट्टेव्युद्ग्राह प्रश्न, तहणाणे - तथाज्ञान, विरहिए - विरह।
भावार्थ - भोजन का परिणाम छह प्रकार का होता है । यथा - १. मनोज्ञ अर्थात् कोई भोजन अभिलाषा योग्य होता है । २. रसिक - कोई भोजन माधुर्यादि रस युक्त होता है । ३. प्रीणनीय - कोई भोजन रसादि धातुओं को सम करने वाला होता है । ४. बृहनीय - कोई भोजन की धातु वृद्धि करने वाला होता है । ५. दीपनीय - कोई भोजन पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला होता है । अथवा मदनीय - काम को जागृत करने वाला होता है । और ६. दर्पनीय - कोई भोजन उत्साह बढ़ाने वाला होता है । विष का परिणाम छह प्रकार का कहा गया है । यथा - दष्ट - दाढ आदि का विष जो डसे जाने पर चढ़ता है । यह दष्ट विष जङ्गम विष है । भुक्त - जो विष खाया जाने पर चढ़ता है । यह विष स्थावर विष है । निपतित - जो विष शरीर पर गिरने से चढ़ जाता है, जैसे दृष्टि विष । किसी किसी सर्प की दृष्टि में विष होता है उनकी नजर पड़ने मात्र से जहर चढ़ जाता है और त्वचा विष - किसी किसी की चमड़ी में विष होता है उनके शरीर का स्पर्श होते ही जहर चढ़ जाता है । ये तीन विष स्वरूप की अपेक्षा से हैं । मांसानुसारी - मांस तक फैल जाने वाला विष, शोणितानुसारी - खून तक फैल जाने वाला विष, अस्थिमिञ्जानुसारी - हड्डी में रही हुई मजा धातु तक असर करने वाला विष । ये तीन विष कार्य की अपेक्षा से है।
प्रश्न - संशय निवारण या दूसरे को नीचा दिखाने की इच्छा से किसी बात को पूछना प्रश्न कहलाता है । प्रश्न छह प्रकार का कहा गया है । यथा - संशय प्रश्न - किसी अर्थ में संशय होने पर जो प्रश्न किया जाता है, वह संशय प्रश्न है । व्युद्ग्राह प्रश्न - दुराग्रह अथवा परपक्ष को दूषित करने के लिए किया जाने वाला प्रश्न व्युद्गाह प्रश्न है । अनुयोगी प्रश्न - अनुयोग अर्थात् किसी पदार्थ की व्याख्या एवं प्ररूपणा के लिए किया जाने वाला प्रश्न अनुयोगी प्रश्न कहलाता है । अनुलोम प्रश्न - सामने वाले को अनुकूल करने के लिए जो प्रश्न किया जाता है, जैसे 'आप कुशल तो हैं', इत्यादि । तथाज्ञान प्रश्न - जानते हुए भी जो प्रश्न किया जाता है वह तथाज्ञान प्रश्न है । अतथाज्ञान प्रश्न - नहीं जानते हुए जो प्रश्न किया जाता है वह अतथाज्ञान प्रश्न है।
चमरेन्द्र की चमरचञ्चा राजधानी में उपपात यानी देव उत्पन्न होने की अपेक्षा उत्कृष्ट विरह छह महीने का है । प्रत्येक इन्द्र स्थान का उपपात की अपेक्षा उत्कृष्ट विरह छह महीने का है यानी एक इन्द्र के चव जाने पर दूसरे इन्द्र के उत्पन्न होने में उत्कृष्ट छह महीने का विरह पड़ सकता है । सब से नीचे की तमस्तमा नामक सातवीं नरक में उपपात की अपेक्षा उत्कृष्ट विरह छह महीने का पड़ सकता है। सिद्धि गति में उपपात की अपेक्षा यानी मोक्ष जाने में उत्कृष्ट विरह छह महीने का पड़ सकता है ।
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