Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ७
१६५
पिण्डषणाएं सात... बयालीस दोष टालकर शुद्ध आहार पानी ग्रहण करने को एषणा कहते हैं। इसके पिंडैषणा और पानैषणा दो भेद हैं। आहार ग्रहण करने को पिंडैषणा तथा पानी ग्रहण करने को पानैषणा कहते हैं। पिंडैषणा अर्थात् आहार को ग्रहण करने के सात प्रकार हैं। साधु दो तरह के होते हैं - गच्छान्तर्गत अर्थात् गच्छ में रहे हुए और गच्छविनिर्गत अर्थात् विशिष्ट साधना करने के लिये गच्छ से बाहर निकले हुए। गच्छान्तर्गत साधु सातों पिंडैषणाओं का ग्रहण करते हैं। गच्छविनिर्गत पहिले की दो पिंडैषणाओं को छोड़ कर बाकी पांच का ग्रहण करते हैं।
१. असंसट्ठा - हाथ और भिक्षा देने का बर्तन अन्नादि के संसर्ग से रहित होने पर सूजता अर्थात् कल्पनीय आहार लेना।
२. संसट्ठा - हाथ और भिक्षा देने का बर्तन अन्नादि के संसर्ग वाला होने पर सूजता और कल्पनीय आहार लेना। ___३. उद्धडा - थाली बटलोई आदि बर्तन से बाहर निकाला हुआ सूझता और कल्पनीय आहार लेना।
.. ४ अप्पलेवा - अल्प अर्थात् बिना चिकनाहट वाला आहार लेना। जैसे भुने हुए चने। .. ५. उग्गहिया - गृहस्थ द्वारा अपने भोजन के लिए थाली में परोसा हुआ आहार जीमना शुरू करने के पहिले लेना।
६. पग्गहिया - थाली में परोसने के लिए कुड़छी या चम्मच वगैरह से निकाला हुआ आहार थाली में डालने से पहिले लेना।
- ७. उझियधम्मा - जो आहार अधिक होने से या और किसी कारण से श्रावक ने फैंक देने योग्य समझा हो, उसे सूझता होने पर लेना।
पानषणा के सात भेद
निर्दोष पानी लेने को पानैषणा कहते हैं। इसके भी पिंडैषणा की तरह सात भेद हैं। पिंडैषणा और पानैषणा के सात सात भेद आचाराङ्ग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कन्ध में बतलाये गये हैं।
अवग्रह प्रतिमाएं (प्रतिज्ञाएं) सात
साधु जो मकान, वस्त्र, पात्र, आहारादि वस्तुएं लेता है उन्हें अवग्रह कहते हैं। इन वस्तुओं को लेने में विशेष प्रकार की मर्यादा करना अवग्रह प्रतिमा है। किसी धर्मशाला अथवा मुसाफिरखाने में ठहरने
* हाच आदि संसृष्ट होने पर बाद में सचित्त पानी से धोने, या भिक्षा देने के बाद आहार कम हो जाने पर और बनाने में पश्चात्कर्म दोष लगता है। इसलिए श्रावक को बाद में सचित्त पानी से हाथ आदि नहीं धोने चाहिए और न नई वस्तु बनानी चाहिए।
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