Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
स्थान ७
१६७
सात महाअध्ययन - १. पुण्डरीक, २. क्रियास्थान, ३. आहार परिज्ञा, ४. प्रत्याख्यान क्रिया, ५. अनाचार श्रुत, ६. आर्द्रकुमार, ७. नालंदा (उदगपेढाल पुत्र) । ये सात अध्ययन सूयगडाङ्ग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कन्ध के हैं।
सात पृथ्वियाँ अहोलोए णं सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, सत्त घणोदहीओ पण्णत्ताओ, सत्त घणवाया सत्त तणुवाया पण्णत्ता, सत्त उवासंतरा पण्णत्ता, एएसुणं सत्तसु उवासंतरेसु सत्त तणुवाया पइट्ठिया । एएसुणं सत्तसु तणुवाएसु सत्त घणवाया पइट्ठिया, एएसुणं सत्तसु घणवाएस सत्त घणोदही पइट्ठिया, एएस णं सत्तसु घणोदहीसु पिंडलग पिहुलसंठाण संठियाओ सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ तंजहा-पढमा जावं सत्तमा। एयासि
णं सत्तडं पुढवीणं सत्त णामधिज्जा पण्णत्ता तंजहा - घम्मा, वंसा, सेला, अंजणा, रिट्ठा, मघा, माघवई । एयासि णं सत्तण्डं पुढवीणं सत्त गोत्ता पण्णत्ता तंजहारयणप्पभा, सक्करप्पभा, वालुयप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, तमा, तमतमा॥६३॥
' कठिन शब्दार्थ - उवासंतरा - अवकाशान्तर, पिंडलग पिहुल संठाण संठियाओ - फूलों की टोकरी के समान चौड़े संस्थान वाली।
. भावार्थ - अधोलोक में सात पृथ्वियाँ, सात घनोदधि, सात घनवात, सात तनुवात और सात । अवकाशान्तर यानी पृथ्वी के अन्तर कहे गये हैं। इन सात अन्तरों में सात तनुवात रही हुई हैं। इन सात तनुवातों में सात घनवात रही हुई हैं। इन सात घनवातों में सात घनोदधि रही हुई है। इन सात घनोदधियों में फूलों की टोकरी के समान विस्तार वाली सात पृथ्वियां कही गई है। यथा - पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवीं, छठी और सातवीं। इन सात पृथ्वियों के सात नाम कहे गये हैं। यथा - घम्मा, वंशा, सेला, अञ्जना, रिष्टा, मघा और माधवती। इन सात पृथ्वियों के सात गोत्र यानी गुणनिष्पन्न नाम कहे गये हैं। यथा - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमतमाप्रभा (महा तमः प्रभा)।
. विवेचन - घोर पापाचरण करने वाले जीव अपने पापों का फल भोगने के लिये अधोलोक के जिन स्थानों में पैदा होते हैं उन्हें नरक कहते हैं। वे नरक सात पृथ्वियों में विभक्त हैं। अथवा मनुष्य और तिर्यंच जहां पर अपने अपने पापों के अनुसार भयंकर कष्ट उठाते हैं उन्हें नरक कहते हैं। सात पवियों के नाम इस प्रकार हैं- १. घम्मा २. वंशा ३. सीला ४. अंजना ५. रिट्ठा ६. मघा ७. माघवई। इन सातों के गोत्र हैं - १. रत्नप्रभा २. शर्करा प्रभा ३. वालुकाप्रभा ४. पंकप्रभा ५. धूमप्रभा ६. तमः प्रभा ७. महातमः प्रभा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org