Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ५ उद्देशक ३
९५ । 000000000000000000000000000000000000000000000000000 से निकलने वाला जीव सिद्धिगति में जाता है । ऐसा कहा गया है । पांच प्रकार का छेदन यानी आयुष्य का छेदन कहा गया है । यथा - उत्पातछेदन यानी देवगति या नरक गति में उत्पन्न होना, व्ययछेदन यानी मनुष्यादि की पर्यायान्तर से उत्पन्न होना, बन्ध छेदन यानी कर्मबन्धन से जीव का अलग होना, प्रदेश छेदन यानी जीव के प्रदेश भिन्न होना और द्विधाकार छेदन यानी दो टुकड़े होना, तीन टुकड़े होना। पांच प्रकार का आनन्तर्य यानी अन्तरहित पना - अविरह कहा गया है । यथा - उत्पातानन्तर्य यानी उत्पात का अविरह - जैसे नरक गति में जीवों का असंख्यात समय का अविरह है । व्ययान्तर्य - जैसे मनुष्यादि गति में भी जीवों का असंख्यात समय का अविरह है । प्रदेशानन्तर्य - जैसे एक प्रदेश का दूसरे प्रदेश से अन्तर नहीं है । समयानन्तर्य - जैसे एक समय का दूसरे समय से अन्तर नहीं है । सामान्यानन्तर्य - उत्पाद व्यय आदि की विवक्षा न करके सामान्य रूप से आनन्तर्य का कथन करना सामान्यान्तर्य है । अथवा श्रामण्यानन्तर्य - बहुत जीवों की अपेक्षा श्रमणपने का अविरह आठ समय का है । पांच प्रकार का अनन्त कहा गया है । यथा - नाम अनन्तक, स्थापना अनन्तक, द्रव्य अनन्तक, गणना अन्तक और प्रदेश अनन्तक । अथवा दूसरी तरह से पांच प्रकार का अनन्त कहा गया है । यथाएकतः अनन्तक यानी एक तरफ लम्बाई से अनन्त । द्विधा अनन्तक यानी दोनों तरफ लम्बाई चौड़ाई से अनन्त देश विस्तार अनन्तक यानी रुचक प्रदेश की अपेक्षा पूर्व आदि एक दिशा विस्तार का अन्त सर्व विस्तार अनन्तक यानी सर्व आकाश का अनन्त और शाश्वत अनन्तक यानी अनादि अनन्त । - विवेचन - निर्याण मार्ग - मृत्यु के समय में जीव के शरीर में से निकलने के मार्ग को निर्याण मार्ग कहते हैं जो पांच प्रकार के कहे गये हैं - दोनों पैर, दोनों गोडे, छाती, सिर और सब अंग। इनसे निकलने वाला जीव क्रमशः नरक गति, तिथंच गति, मनुष्य गति, देवगति और सिद्धि गति में जाने वाला होता है। निर्याण तो आयुष्य के छेदन से होता है अतः पांच प्रकार का छेदन कहा गया है।
पाँच अनन्तक :- १. नाम अनन्तक २. स्थापना अनन्तक ३. द्रव्य अनन्तंक ४. गणना अनन्तक ५. प्रदेश अनन्तक।
१. नाम अनन्तक - सचित्त, अचित्त, आदि वस्तु का 'अनन्तक' इस प्रकार जो नाम दिया जाता है वह नाम अनन्तक है।
२. स्थापना अनन्तक - किसी वस्तु में अनन्तक की स्थापना करना स्थापना अनन्तक है। ३. द्रव्य अनन्तक - गिनती योग्य जीव या पुद्गल द्रव्यों का अनन्तक द्रव्य अनन्तक है। ४. गणना अनन्तक - गणना की अपेक्षा जो अनन्तक संख्या है वह गणना अनन्तक है। ५. प्रदेश अनन्तक - आकाश प्रदेशों की जो अनन्तता है। वह प्रदेश अनन्तक है।
पाँच अनन्तक - १. एकतः अनन्तक २. द्विधा अनन्तक ३. देश विस्तार अनन्तक ४. सर्व विस्तार अनन्तंक ५. शाश्वत अनन्तक।
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