Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान६
१३१
पहले मत का आशय है कि द्रव्य लेश्या कर्मवर्गणा से .बनी हुई है और कर्म रूप होते हुए भी कार्मण शरीर के समान आठ कर्मों से भिन्न है। .
दूसरे मत का आशय है कि द्रव्य लेश्या कर्म निष्यन्द अर्थात् कर्म प्रवाह रूप है। चौदहवें गुणस्थान में कर्म होने पर भी उन का प्रवाह (नवीन कर्मों का आना) न होने से वहाँ लेश्या के अभाव की संगति हो जाती है। .
तीसरे मत का आशय है कि जब तक योग रहता है तब तक लेश्या रहती है। योग के अभाव में लेश्या भी नहीं होती, जैसे चौदहवें गुणस्थान में। इसलिए लेश्या योग परिणाम रूप है। इस मत के अनुसार लेश्या योगान्तर्गत द्रव्य रूप है अर्थात् मन वचन और काया के अन्तर्गत शुभाशुभ परिणाम के कारण भूत कृष्णादि वर्ण वाले पुद्गल ही द्रव्य लेश्या है। आत्मा में रही हुई कषायों को लेश्या बढ़ाती है। योगान्तर्गत पुद्गलों में कषाय बढ़ाने की शक्ति रहती है, जैसे पित्त के प्रकोप से क्रोध की वृद्धि
होती हैं।
- योगान्तर्गत पुद्गलों के वर्गों की अपेक्षा द्रव्य लेश्या छह प्रकार की है - १. कृष्ण लेश्या २. नील लेश्या ३. कापोत लेश्या ४. तेजो लेश्या ५. पद्म लेश्या ६. शुक्ल लेश्या। इन छहों लेश्याओं के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श आदि का सविस्तार वर्णन उत्तराध्ययन के ३४ वें अध्ययन और पन्नवणा के १७ वें पद में है। पन्नवणा सूत्र में यह भी बताया गया है कि कृष्ण लेश्यादि के द्रव्य जब नील लेश्यादि के साथ मिलते हैं तब वे नील लेश्यादि के स्वभाव तथा वर्णादि में परिणत हो जाते हैं, जैसे दूध में छाछ डालने से वह दूध छाछ रूप में परिणत हो जाता है, एवं वस्त्र को मजीठ में भिगोने से वह मजीठ के वर्ण का हो जाता है। किन्तु लेश्या का यह परिणाम केवल मनुष्य और तिर्यंच की लेश्या के सम्बन्ध में ही है। देवता और नारकी में द्रव्य लेश्या अवस्थित होती है इसलिए वहाँ अन्य लेश्या द्रव्यों का सम्बन्ध होने पर भी अवस्थित लेश्यां सम्बध्यमान लेश्या के रूप में परिणत नहीं होती। वे अपने स्वरूप को रखती हुई सम्बध्यमान लेश्या द्रव्यों की छाया मात्र धारण करती हैं, जैसे वैडूर्य मणि में लाल धागा पिरोने पर वह अपने नील वर्ण को रखते हुए धागे की लाल छाया को धारण करती है। ::
भाव लेश्या - योगान्तर्गत कृष्णादि द्रव्य यानी द्रव्यलेश्या के संयोग से होने वाला आत्मा का परिणाम विशेष भावलेश्या है। इसके दो भेद हैं - विशुद्ध भावलेश्या और अविशुद्ध भाव लेश्या।
विशुद्ध भावलेश्या - अकलुष द्रव्यलेश्या के सम्बन्ध होने पर कषाय के क्षय, उपशम या क्षयोपशम से होने वाला आत्मा का शुभ परिणाम विशुद्ध भावलेश्या है।
अविशुद्ध भावलेश्या - कलुषित द्रव्य लेश्या के सम्बन्ध होने पर राग द्वेष विषयक आत्मा के अशुभ परिणाम अविशुद्ध भाव लेश्या है। - यही विशुद्ध एवं अविशुद्ध भावलेश्या कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल के भेद से छह
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