Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
संहनन, संस्थान छविहे संघयणे पण्णत्ते तंजहा - वइरोसभणाराय संघयणे, उसभणाराय संघयणे, णाराय संघयणे, अद्धणाराय संघयणे, कीलिया संघयणे, छेवट्ट संघयणे । छविहे संठाणे पण्णत्ते तंजहा-समचउरंसे, णग्गोहपरिमंडले, साई, खुजे, वामणे, हुंडे ४५।
कठिन शब्दार्थ - अंतरदीवगा - अंतरद्वीपिक - अन्तर द्वीप में रहने वाले, इडिमंता - ऋद्धिमान्, चारणा - चारण-आकाशगामिनी विद्या जानने वाले, विजाहरा - विद्याधर, अणिडिमंता - ऋद्धि रहित, कुरुवासिणो - देवकुरु उत्तरकुरु में रहने वाले, ओसप्पिणी - अवसर्पिणी, उस्सप्पिणीउत्सर्पिणी, संघयणे - संहनन, वइरोसभणाराय संघयणे - वज्र ऋषभ नाराच संहनन, उसभणाराय संघयणे- ऋषभनाराच संहनन, णाराय संघयणे- नाराच संहनन, अद्धणाराय संघयणे - अर्धनाराच संहनन, कीलिया संघयणे - कीलिका संहनन, छेवट्ट संघयणे - सेवार्त्तक संहनन, समचउरंसे - समचतुरस्र, णग्गोह परिमंडले - न्यग्रोधपरिमंडल, साई - सादि, खुजे - कुब्ज, वामणे - वामन, हुंडे- हुण्डक।
भावार्थ - छह प्रकार के मनुष्य कहे गये हैं यथा - जम्बूद्वीप में रहने वाले, धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्द्ध भाग में रहने वाले, धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिमार्द्ध भाग में रहने वाले, पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्द्ध भाग में रहने वाले, पुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्द्ध भाग में रहने वाले और अन्तर द्वीप में रहने वाले । अथवा दूसरी तरह से मनुष्य छह प्रकार के कहे गये हैं यथा - कर्मभूमि के सम्मूर्छिम मनुष्य, अकर्मभूमि के सम्मूर्छिम मनुष्य, अन्तर द्वीप के सम्मूर्छिम मनुष्य । कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य, अकर्मभूमि के गर्भज मनुष्य, अन्तर द्वीप के गर्भज मनुष्य । छह प्रकार के ऋद्धिमान् मनुष्य कहे गये हैं यथा - अरिहन्त - रागद्वेष रूपी शत्रुओं का नाश करने वाले अरिहन्त कहलाते हैं । वे अष्ट महाप्रातिहार्यादि ऋद्धियों से सम्पन्न होते हैं । चक्रवर्ती - चौदह रत्ल और छह खण्डों के स्वामी चक्रवर्ती कहलाते हैं । वे सर्वोत्कृष्ट लौकिक समृद्धि सम्पन्न होते हैं । वासुदेव के बड़े भाई बलदेव कहे जाते हैं । वे कई प्रकार की ऋद्धियों से सम्पन्न होते हैं । वासुदेव - सात रत्न और तीन खण्डों के स्वामी वासुदेव कहलाते हैं । ये भी अनेक प्रकार की ऋद्धियों से सम्पन्न होते हैं । बलदेव से वासुदेव की ऋद्धि दुगुनी और वासुदेव से चक्रवर्ती की ऋद्धि दुगुनी होती है । चारण - आकाशगामिनी विदया जानने वाले चारण कहलाते हैं । चारण के दो भेद हैं - जंघाचारण और विदयाचारण । चारित्र और तप विशेष के प्रभाव से जिन्हें आकाश में आने जाने की ऋद्धि प्राप्त हो वे जंघाचारण कहलाते हैं । जिन्हें आकाश में आने जाने की लब्धि विदया द्वारा प्राप्त हो वे विदयाचारण कहलाते हैं । विदयाधर - वैतात्य पर्वत पर रहने वाले, प्रज्ञप्ति आदि विदयाओं को धारण करने वाले विशिष्ट शक्ति सम्पन्न व्यक्ति विदयाधर कहलाते हैं । ये आकाश में उड़ते हैं तथा अनेक चमत्कारिक कार्य करते हैं । छह प्रकार के'
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