Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ५ उद्देशक २
चित्रकूट नाम के दो पर्वत हैं जो एक हजार योजन के ऊंचे, मूल भाग में एक हजार योजन के लम्बे चौड़े और ऊपर के भाग में ५०० योजन के लम्बे चौड़े प्रासाद से सुंदर और अपने नाम वाले देव के निवासभूत है। उन दो पर्वतों उत्तर दिशा में पूर्व कथित अंतर वाले, सीतोदा महानदी के मध्य भाग में रहे हुए, दक्षिण और उत्तर में एक हजार योजन के लम्बे, पूर्व पश्चिम पांच सौ योजन के चौड़े दो वेदिका और दो वनखंड से घिरे हुए दस योजन के ऊंडे (गहरे) द्रह हैं। जो विविध मणिमय दस योजन के कमलनाल वाले, अर्द्धयोजन की मोटाई वाले, एक योजन की चौड़ाई वाले आधे योजन के विस्तार वाले तथा एक गाऊ की ऊंचाई वाली कर्णिका से युक्त, निषध नाम के देव के निवास भूत भवन से शोभित मध्य भाग वाले महापद्म कमल है उससे अर्द्ध प्रमाण वाले १०८ पद्म कमलों से और इन कमलों से अन्य सामानिक आदि देवों के निवासभूत पद्म कमलों की एक लाख संख्या से चारों तरफ घिरे हुए महापद्म से जिसका मध्य भाग शोभित है ऐसा निषध नाम का महाद्रह है। इसी प्रकार अन्य ग्रहों की वक्तव्यता निषेध के समान अपने नाम के अनुसार देवों के निवास और अंतर के अनुसार जानना । विशेषता यह है कि नीलवान् महाद्रह विचित्रकूट और चित्रकूट पर्वत की वक्तव्यता से अपने नाम समान देवों के आवासभूत यमक नाम के दो पर्वतों से अंतर रहित जानना, उसके बाद दक्षिण से शेष चार द्रह जानना । ये सब द्रह १० - १० कांचनक नामक पर्वत से युक्त हैं। ये पर्वत १०० योजन के ऊंचे मूल में १०० योजन चौड़े ऊपर भाग में ५० योजन के चौड़े और अपने समान नाम वाले देवों के आवास से प्रत्येक (द्रहों से ) १०-१० योजन के अंतर से पूर्व और पश्चिम दिशा में रहे हुए हैं। ये विचित्र कूटादि पर्वत और द्रह निवासी देवों की असंख्येय योजन प्रमाण वाली दूसरे जम्बूद्वीप के विषय में बारह हजार योजन प्रमाण वाली और उनके नाम वाली नगरियाँ हैं ।
जंबूद्वीप संबंधी सभी वक्षस्कार पर्वत प्रसिद्ध सीता और सीतोदा इन दो नदियों के आश्रयी अर्थात् नदी की दिशा में अथवा मेरु पर्वत की ओर उसकी दिशा में वैसे गजदंत जैसे आकार वाले माल्यवंत, सौमनस, विद्युत्प्रभ और गंधमादन पर्वत, मेरु की अपेक्षा उस दिशा में यथोक्त स्वरूप वाला है। इसके आगे कहे सात सूत्र धातकी खंड के और पुष्करार्द्ध द्वीप के पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्द्ध के विषय में जम्बूद्वीप की तरह जानना चाहिये ।
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समय क्षेत्र - समय-काल विशिष्ट जो क्षेत्र है वह समय क्षेत्र अर्थात् मनुष्य क्षेत्र जिसमें सूर्य की गति से जानने योग्य ऋतु और अयनादि काल युक्तपना है।
जागृत एवं अवलम्बन के कारण
पंचहि ठाणेहिं सुत्ते विबुज्झेज्जा तंजहा- सद्देणं, फासेणं, भोवण परिणामेणं, णिद्धक्खएणं, सुविण दंसणेणं । पंचहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे णिग्गंथिं गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णाइक्कमइ तंजहा - णिग्गंथिं च अण्णयरे पसुजाइए वा,
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