Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
को स्वीकार कर वस्त्रादि से उनकी सहायता करने के लिए आचार्य उपाध्याय गच्छ से निकल जाते हैं। . इन पांच कारणों से आचार्य उपाध्याय का गणापक्रमण कहा गया है। ___पांच प्रकार के ऋद्धिवन्त: मनुष्य कहे गये हैं. यथा - अरिहंत यानी तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव और भावितात्मा यानी श्रेष्ठ भावनाओं से अपनी आत्मा को भावित करने वाले अनगार । ये पांच ऋद्धिमान् मनुष्य कहे गये हैं।
विवेचन - पाँच कारणों से आचार्य, उपाध्याय गच्छ से निकल जाते हैं -
१. गच्छ में साधुओं के दुर्विनीत होने पर आचार्य, उपाध्याय"इस प्रकार प्रवृत्ति करो, इस प्रकार न करो" इत्यादि प्रवृत्ति निवृत्ति रूप, आज्ञा धारणा यथायोग्य न प्रवर्ता सकें। ___२. आचार्य, उपाध्याय पद के अभिमान से रत्नाधिक (दीक्षा में बड़े) साधुओं की यथायोग्य विनय न करें तथा साधुओं में छोटों से बड़े साधुओं की विनय न करा सकें।
३. आचार्य, उपाध्याय जो सूत्रों के अध्ययन, उद्देशक आदि धारण किये हुए हैं उनकी यथावसर गण को वाचना न दें। वाचना न देने में दोनों ओर की अयोग्यता संभव है। गच्छ के साधु अविनीत हो सकते हैं तथा आचार्य, उपाध्याय भी सुखासक्त तथा मन्दबुद्धि हो सकते हैं।
४. गच्छ में रहे हुए आचार्य, उपाध्याय अपने या दूसरे गच्छ की साध्वी में मोहवश आसक्त हो जाय।
५. आचार्य, उपाध्याय के मित्र या ज्ञाति के लोग किसी कारण से उन्हें गच्छ से निकालें। उन लोगों की बात स्वीकार कर उनकी वस्त्रादि से सहायता करने के लिये आचार्य, उपाध्याय गच्छ से निकल जाते हैं। पांचवें स्थान का दूसरा उद्देशक समाप्त ।।
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पांचवें स्थान का तीसरा उद्देशक
. . अस्तिकाय ..... . .. ___पंच अस्थिकाया पण्णत्ता तंजहा - धम्मत्यिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासथिकाए, जीवत्तिकाए, पोग्गलत्थिकाए । धम्मत्थिकाए अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे, अस्वी, अजीवे, सासए, अवट्ठिए, लोगदव्वे, से समासओ पंचविहे पण्णत्ते तंजहा - दव्वओ खित्तओ कालओ भावओ गुणओ । दव्वओ णं धम्मस्थिकाए एगं । दव्वं, खित्तओ लोगप्पमाणमित्ते, कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवइ, ण
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